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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
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काव्यांजलि (कवियों की दृष्टि में)
डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य के प्रति भावांजलि
पथ दर्शक अथाह सागर में, था निज ज्ञान अपार गुरु गणेश के आदर्शोका, रहा हृदय में भान ॥ शिक्षा के प्रति सदा समर्पित, साथ दया का भाव सरल लेखनी सहज भाव संग, हृदयांकित है आज || महावीर की पावन गाथा, "अमर भारती" साथ "धर्म दिवाकर" श्रुत संवर्धन, पाया निज सम्मान ॥ णमोकार मय बाहुबली का, लिए हृदय में ध्यान त्यागे प्राण बिदाली जग से, त्यागा न कभी शुभ ध्यान ॥ बिरले ही होते हैं जग में, ऐसे मानव आज
किरणें ही जग में बिखेरती, ज्योति पुंज प्रकाश ॥ कैसे करूं समर्पित अब मैं, "रतन" शब्द का हार न कलश तर्पण को आतुर, अर्चन को हैं प्राण ||
उज्जवल
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साहित्याचार्य प्राचार्य दयाचंद जी थे, विद्वानों में परम यशस्वी जिनके अंतरंग में निवास करती थी, विश्व मातेश्वरी सरस्वती ॥ सादा जीवन उच्च विचारों का,
आदर्श रूप उदगम था । गुणकीर्ति जिनकी,
वाणी में अदभुत संयम था । दया प्रधान मुख्य में थे जो,
मोराजी के महामनस्वी ।
मोराजी के महामनस्वी
जिनवाणी के कुशल प्रवक्ता,
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
पंडित जी साहित्य मनीषी ॥
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राजेन्द्र जैन "रतन” गोलबाजार, जबलपुर
योगेन्द्र दिवाकर, सतना
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