SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्तेि स्मृतियाँ प्राचार्यरत्न विद्वानों का गढ़ सागर है, सागर के थे प्राचार्य रत्न । शांति पथ पर जिनका जीवन, शांति हेतु किये प्रयत्न ।। आदर्श पुरुष थे पंडित जी , धार्मिक कार्यो में सदा व्यस्त । सच्चे अर्थो में दयाचंद थे , अहिंसा मार्ग करते प्रशस्त ।। __ आदर्शकीर्ति धर्म संस्कृति वान पुरुष थे, दयाचंद साहित्याचार्य । आध्यात्मिक विद्या ही जिनकी, करती रहती थी सत्कार्य । अमर हो गये मोराजी में, बाहुबली के दर्शन कर । वर्णी जी की प्रतिमा सम्मुख, अर्पित होकर जीवन भर । साहित्य मनीषी की स्मृतियाँ, अब समाज की गौरव है। आदर्श कीर्ति ही उन की ले, अंकित सम्यक्त्व सौरभ है। शाश्वत स्वर सरस्वती की सेवा में ही, लिखते थे जो शाश्वत स्वर । चरण आचरण वान थे, जिनके जीवन भर ॥ निस्पृह थे जो ज्ञानकल्प तरू पंडित जी । जिनका था व्यक्तित्व और कृतित्व अमर ॥ महाकवि योगेन्द्र दिवाकर ,सतना सविनय विनयांजलि दया धर्म में रमते रहे छोड़ी सब परवाह । जीवन को समुन्नत किया, पकड़ धर्म की राह ।। माता “मथुरा'' के लाड़ले, सुपुत्र भगवान के दास । ग्राम शाहपुर मगरोन में, जन्मे "श्री जिन " दास ।। बचपन से मन योग कर, शिक्षा पाई पूर्ण । पढ़कर के पंडित बने, आशा तृष्णा कर चूर्ण ।। पूरा जीवन धर्ममय , अध्यापन में लगा दिया । स्वर्णिम उपयोग किया जीवन का, शिष्यों का भी भला किया। हमको जो ज्ञान दिया गुरुवर , हम उऋण नहीं हो सकते है। "योगीराज" बना दिया हमको, हम शत् शत वंदन करते है ।। पं. फूलचंद जैन योगीराज, छतरपुर (म.प्र.) (59) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy