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(iv)
नगर-प्रवेशोत्सव, आलेखन, षोडश रोग आदि विभिन्न वर्णनों में समयसुन्दर के कौशल को दर्शाने का प्रयत्न किया गया है।
___ पंचम अध्याय में काव्यशास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत है। इसमें समयसुन्दर की रचनाओं में प्राप्त साहित्यिक तत्त्वों पर विशद् प्रकाश डाला गया है। यह अध्याय विवेचन की सुविधा की दृष्टि से दो खण्डों में विभक्त है। खण्ड 'क' में रस-परिपाक, अलंकारशिल्प, गुण, छन्द-योजना, रागें तथा देशी – इन्हें केन्द्र-बिन्दु बनाकर समयसुन्दर के काव्यों में प्राप्त साहित्यिक तत्त्वों को उजागर किया गया है। खण्ड 'ख' में विवेच्य साहित्य में उपलब्ध सूक्त-सुभाषितों, कहावतों तथा मुहावरों का उल्लेख है।
षष्ठ अध्याय समयसुन्दर का विचार-पक्ष है, जिसमें उनके दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं नैतिकतापूर्ण वैचारिक पक्ष का विवेचन है।
सप्तम अध्याय में समयसुन्दर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें समग्र शोध-प्रबन्ध का सिंहावलोकन करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार सात अध्यायों में विभक्त प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में समयसुन्दर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समुचित दिग्दर्शन करने का प्रयास किया गया है।
इस प्रयास को मूर्त रूप देने में जिन सहृदय महानुभावों का आशीर्वाद और सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सबके प्रति विनम्र कृतज्ञता ज्ञापित करना भी मैं अपना परम पुनीत कर्तव्य समझता हूँ।
सर्वप्रथम मैं उन आदर्श महापुरुषों के प्रति विनयावनत हूँ, जिनके उपदेश आज भी जीव-मात्र के लिए शाश्वत मार्गदर्शक हैं। साथ ही मैं महोपाध्याय समयसुन्दर जी के प्रति भी श्रद्धावनत हूँ, जिनके विशाल साहित्य पर मैंने यह शोध-कार्य किया है।
समयसुन्दर की रचनाएँ जिस रूप में हमें संग्रहीत मिलती हैं, हम उनके संग्रहकर्ताओं के प्रति भी आभारी हैं, जिनके फलस्वरूप समयसुन्दर के साहित्य की वह पवित्र निधि सुरक्षित रहकर हमें उपलब्ध हो सकी है। हम मुनि सुखसागरजी, मुनि मंगलसागरजी आदि महानुभावों के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने दानदाताओं एवं प्राचीन पुस्तकोद्धारक प्रकाशकों को सत्प्रेरणा देकर महोपाध्याय समयसुन्दर के साहित्य को प्रकाशित करवाने में रुचि ली। मोहनलाल दलीचन्द देसाई, अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर, डॉ. सत्यनारायण स्वामी, डॉ. रमणलाल ची. शाह आदि विद्वानों के प्रति भी हम कृतज्ञ हैं, जिन्होंने हमारे आलोच्य साहित्यकार को अपनी साहित्य-सेवा में संलग्न किया और उनके आलोक को जन-जन तक पहुँचाने में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
__ अब सर्वप्रथम मैं पूज्यातिशय गुरुवर्य आचार्य जिनकान्तिसागरसूरिजी के प्रति हार्दिक विनयांजलि समर्पित करता हूँ, जिनकी अनुकम्पा से मैं अपने लक्ष्य का सन्धान
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