________________
समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
५९ १६.४.२ पार्श्वचन्द्रगच्छ से पारस्परिक सम्बन्ध - यह वस्तुतः तपागच्छा की ही एक प्रमुख शाखा है। इस गच्छ के प्रवर्तक आचार्य पार्श्वचन्द्रसूरि के वंश में आचार्य विमलचन्द्रसूरि के शिष्य-रत्न पुंजा ऋषि हुए, जो ज्ञानी और महान् त्यागी थे। नवीन कर्मों का आगमन न हो, इसलिए वे अति संयमित रहते थे और पूर्वबद्ध कर्मों को विनष्ट करने हेतु उग्र तपस्या करते थे। कवि के उल्लेखानुसार आपका जन्म गुजरात-प्रदेश के 'रातिज' ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम कडुआ पटेल गोरा था और माता का नाम धनबाई था। आपने अहमदाबाद जनपद में वि० सं० १६७० में दीक्षा ग्रहण की थी। तभी से सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र और सम्यक् तप का उत्कृष्ट पालन करते हुए मोक्षमार्ग पर चल रहे थे। यद्यपि पुंजाऋषि आयु, ज्ञान-प्रतिभा एवं दीक्षा में कवि समयसुन्दर की अपेक्षा छोटे ही थे, तथापि समयसुन्दर आपके तप-त्याग से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने साम्प्रदायिक बेड़ियों को तोड़ते हुए मुक्त कण्ठ से उनकी प्रशंसा और अनुमोदना की। कवि इन्हें जहाज की उपमा देते हुए कहते हैं कि पुंजा ऋषि स्वयं संसार-समुद्र से पार हो रहा है, साथ ही साथ दूसरों को भी विश्व-परिभ्रमण से मुक्त कर रहा है -
श्री पार्श्वचन्द्र ना गच्छ मांहे, ए पुंजो ऋषि आज।
आप तरै नै तारिवै, जिम बड़ सफरी जहाज॥ कवि पुंजा ऋषि की श्लाघनीय तपस्या का गुणगान करते हुए चित्त में एक अलौकिक आह्लाद की अनुभूति करते हैं तथा अपनी जिह्वा और जन्म को सार्थक बताते हैं। वे स्वयं लिखते हैं -
ऋषि पुंजो अति रूडो होवइ,जिनशासन मांहे शोभ चढावइ। तेहना गुण गातां मन मांहइ, आनन्द उपजै अति उछाहइ। जीभ पवित्र हुवै जस भणतां, श्रवण पवित्र थाये सांभलतां। ऋषि पंजे तप कीधो ते कहं, सांभलजो सह कोई रे।
आज नइ कालै करइ कुण एहेवा, पणि अनुमोदन थाई रे॥२
इस तपकर्ता के मंगल दर्शन और उन्हें उत्तम वंदन करने से कवि के हदय में अति आनन्द मिलता है -
आज तो तपसी एहवो, पुंजाऋषि सरीखो न दीसइ रे।
तेहनै वांदता बिहरावता, हरखै कवि हियड़ो हींसइ रे॥३
कवि समयसुन्दर के हृदय में गच्छवाद नहीं था। उनकी प्रकृति मानवीय थी। वे छिद्रान्वेषण और निन्दा से दूर रहते थे। उनके समसामयिक उपाध्याय धर्मसागर हुए,
१. वही, पुंजारत्न-रास, पृष्ठ ५५५ २. वही, पृष्ठ ५५६ ३. वही, पृष्ठ ५५८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org