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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त अन्य साधारण जीवों की रक्षार्थ अमारि की उद्घोषणा करवाई थी। जैसलमेर (राजस्थान) में भी वहाँ के अधिपति रावल भीमजी को प्रतिबोध देकर हिंसा बन्द करवायी थी। इस तरह हम देखते हैं कि समयसुन्दर अहिंसा की सद्भावना से ओतप्रोत थे। वे सर्वभूतों को आत्मवत् ही मानते थे। वे स्पष्ट कहते हैं -
मुझ वइर नहीं छई केह सुं, सहु सुं छई मैत्री भावोजी। १६.४ साम्प्रदायिक औदार्य
कविवर समयसुन्दर का जन्म और दीक्षा – दोनों ही श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में हुई थी। उन्होंने स्वयं अपने को श्वेताम्बर सम्प्रदाय की एक शाखा खरतरगच्छ का अनुयायी बतलाया है। अष्टलक्षी प्रशस्ति में कवि ने खरतरगच्छ के आधाचार्य श्री वर्द्धमानसूरि के प्रगुरु से अपनी परम्परा सिद्ध की है। कवि की गुरुवंश-परम्परा का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है।
कवि ने खरतरगच्छ के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रकट की है और अपनी रचनाओं में कई स्थानों पर इस तथ्य की पुष्टि की है। कवि ने तो यहाँ तक लिखा है कि गुरुगच्छ के प्रति स्नेह रखना, उत्तम कुल का आचार है। गच्छाचार-प्रकीर्णक में भी कहा गया है कि जो गच्छ सन्मार्ग पर चल रहा है, उसका सम्यक् प्रकार अवलोकन कर संयत मुनि आजीवन उसी में रहे। इस प्रकार गच्छ या शाखा से सम्बन्धित होना बुरा नहीं है। १. (क) सिद्धपुर माहे शेख मुहम्मद मोटो हो, जिण प्रतिबोध्यो।
सिन्धु देश मांहे विशेष गायां छोड़ावी हो, तुरके मारती॥
- नलदवदंतीरास, परिशिष्ट ई; कवि राजसोमकृत समयसुन्दरगीतम्, पृष्ठ १३२ (ख) शीतपुर माहे जिण समझावियउ, मखनूम महमद सेखोजी। जीवदया पड़ह फेरावियो, राखी चिहुं खण्ड रेखोजी ।।
- वही, कवि देवीदास कृत समयसुन्दर गीतम्, पृष्ठ १३५ (ग) सिन्धु विहारे लाभ लियो घणो रे, रंजी मखनूम सेख। ___पांचे नदियां जीवदया भरी रे, वलि धेनु विशेष।
- वही, वादी हर्षनन्दनकृत् समयसुन्दरगीतम्, पृष्ठ १३८ (घ) श्री उच्चनगरे शेष, श्री मखतूम-जिहानीयाम्। __ प्रतिबोध्यं गवां घातो, वारितस्तारितात्मभिः॥
- हर्षनन्दन कृत ऋषिमण्डल टीका, प्रशस्ति ११ (ङ) मखतूमजिहानीयां, म्लेच्छगुरु-प्रबोधकाः।
सिन्धी गोमरणभय, त्रातार: पापहर्तारः।- वही (१४) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५३३-५४० ३. वही, चौरासी लक्षजीवयोनिक्षामणागीतम् (३), पृष्ठ ४८४ ४. गुरुगच्छ ना रागी घj, उत्तम घर नो आचारो रे। -सीताराम-चौपाई (९.७.२१) ५. गच्छायार-पइण्णय (७)
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