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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त अन्नदान प्राप्त करने के लिए सभी ने अपने पारस्परिक सम्बन्ध तोड़ दिए। पति को भी पत्नी उतनी प्रिय नहीं रही, जितना प्रिय उसे अन्न हो गया था। अनेक मनुष्य तो अपने घर आदि का त्याग करके अन्य राज्यों में चले गये - मांटी मुंको माणस घणा, मुक्या बहरै पणि माटी, बेटे मुक्या बाप, चतुर देतां जे चांटी। भाई मुकी भइण, भइणि पिण मुंक्या भाइ। अधिको व्हालो अन्न, गइ सहु कुटुम्ब सगाइ। घरबार मुंकी माणस घणा, परदेशइ गया पाधरा। समयसुन्दर कहइ सत्यासीया, तेही न राख्या आधरा। उस समय की गुर्जरभूमि युद्धभूमि बन गयी थी। दुर्भिक्ष-योद्धा के सम्मुख सभी पराजित हो गये। उसने बड़ी ही क्रूरता से गुजरात के नागरिकों का सफाया किया था। मृतक इतने अधिक हो गये कि उनका कोई अन्त्येष्टि-संस्कार करने वाला नहीं था। अतः चारों ओर मृतकों के शरीरों से दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध फैली हुई थी। शायद इस दृश्य से यमराज बहुत प्रसन्न हुआ होगा - मूआ घणा मनष्य, रांक गलिए रडवडिया, सोजो वल्यउ शरीर, पछइ पाज माहे पडिया, कालइ कवण वलाइ, कुण उपाडय किंहा काठी, ताणी नाख्या तेह, मांडि थइ सगली माठी। दुरगंधि दसो दिसि उछली, मडा पड्या दीसइ मुआ। समयसुन्दर कहइ सत्यासीया, किण घरइ न पड्या कुकुआ॥२ इस अकाल ने कितने ही मूर्धन्य और गीतार्थ आचार्यों को भी अपना कौर बनाया था। इसलिए कवि ने इस दुर्भिक्ष को भयंकर हत्यारा कहा है - सिरदार घणेरा संहर्या, गीतारथ गिणती नहीं। समयसुन्दर कहइ सत्यासीया, तुं हतियारउ सालो सही॥ दुष्कालग्रस्त हर मानव दोहरे संघर्षों से गुजर रहा था - एक बाह्य और दूसरा आन्तरिक । बाह्य संघर्षों के कारण उसका जीवन अशान्त और अपराधपूर्ण था, तो आन्तरिक संघर्षों के कारण उसका मानस तनावयुक्त/विक्षुब्ध था। उदरपूर्ति के अलावा उसके मानस में न तो आत्मकल्याण का भाव था और न ही परदुःख-कातरता का भाव। जो देव, गुरु, एवं धर्म के प्रति श्रद्धा रखते थे और उनके परमपुजारी बने हुए थे, वे भी उनसे विमुख हो १. वही (९) २. सत्यासिया-दुष्काल-वर्णन-छत्तीसी (१७) ३. वही (१८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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