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________________ समयसुन्दर का विचार- पक्ष ४७१ अत्यन्त प्रशस्त है । इस साधना में व्यक्ति का मस्तिष्क, हृदय और काया तीनों का योग रहता है। वस्तुतः समयसुन्दर ने जिस साधना - पथ को स्वीकार किया है, वह अत्यन्त मनोवैज्ञानिक है । सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यग्चारित्र - इन तीनों की साधना के लिए मिथ्यात्व का विसर्जन होना अनिवार्य है। मिथ्यात्व का आवरण हटने पर सम्यक्त्व के सूर्य का प्रकाश प्रकाशित हो जाता है। १६. कर्म जैन ग्रन्थों में कर्म सम्बन्धी विचार सूक्ष्मतम व्यवस्थित और अत्यन्त विस्तृत हैं। कर्मों की शुभाशुभ प्रकृति के अनुसार शुभाशुभ फल प्राप्त होने की धारणा में समयसुन्दर का अटूट विश्वास था । 'जीव नइ करम माहो मांहि संबंध अनादि काल नउ १ कहकर उन्होंने आत्मा और कर्म का अनादि सम्बन्ध बताया है । — समयसुन्दर ने कर्म का अस्तित्व दो प्रकार से सिद्ध किया है - १. प्रत्यक्ष प्रमाण से और २. अनुमान प्रमाण से । जीव पुण्यकर्म से पुण्यात्मा होता है और पापकर्म से पापात्मा होता है - यह प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है । इस लोक में सौभाग्य, दौर्भाग्य, विरूपता, दरिद्रता आदि का कोई कारण होना चाहिये, क्योंकि कार्य का कोई कारण अवश्य होता है, जैसे घट का कारण मृत्तिका और पट का कारण उसके तन्तु - यह अनुमान प्रमाण से सिद्ध है । २ जैनदर्शन में कर्म को द्रव्यकर्म और भावकर्म के रूप में जड़-चेतनमय माना गया है । इस सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है करम अचेतन कम हुयउ करता, कहइ किम सकियइ थापी रे । परमेसर पिण किम हुयइ करता, द्यइ दुख तउ ते पापी रे ॥ आरीसा मांहि मुहड़उ दीसर, कहउ ते पुद्गल केहा रे । जीव सरूपी करम अरूपी, किम सम्बन्ध संदेहा रे ॥ जिनसासन शिव सासन प्रच्छू, पुस्तक पाना वांचुं रे । समयसुन्दर कहइ सांसउ न भागउ, भगवत कहइ ते सांचं रे ॥३ समयसुन्दर का कर्म - सिद्धान्त है - जैसी करणी, वैसी भरणी । उनका कहना है कि जिस समय जीव जैसा भाव करता है, वह उस समय वैसे ही कर्मबन्ध करता है और कर्म-विपाक का उदय होने पर वह उसी के अनुरूप शुभ-अशुभ फल प्राप्त करता है। समयसुन्दर अनीश्वरवादी विचारधारा के थे; अतः उनका इस बात में बिल्कुल १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जीव-कर्म-सम्बन्ध गीतम्, पृष्ठ ४४२ २. कल्पलता, पृष्ठ १५२ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, सन्देह गीतम्, पृष्ठ ४४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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