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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व १.८ आत्म-स्वरूप
जीव नइ करम माही माही संबंध, अनादिकाल नउ कहियइ रे। ए पहिलउ ए पछइ न कहियइ, धातु उपलभेद लहियइ रे। तप जप अगनि करी नइ एहनउ, दुष्ट करम मल दहियइ रे।
समयसुन्दर कहइ एहिज आत्मा, सिद्ध रूप सरदहियइ रे॥१ १.९ ईश्वर कृपालु या पापी?
कबहु मिलइ मुझ जउ करतारा, तउ पूर्वी दोइ बतियाँ रे।
तूं कृपाल कि तूं हइ पापी, लखि न सकू तोरी गतियाँ रे॥२ १.१० उत्थान और पतन
किसी के सब दिन सरिखे न होई।
प्रह ऊगत अस्तंगत दिनकर, दिन मई अवस्था दोई ॥३ १.११ एकत्व-भावना (क) एक आवै चलै एकणा, कु छ साथ न आवइ।
भली बुरी करणी करी रे, पीछे सुख दुख पावइ। (ख) हो एकलो आवे जीवड़ो रे, हो परभव जाउ पण एक।
हो कुटुंब सहु को कारिमो रे, हो वारु धर्म विवेक॥ हो परभव जाए एकलो रे, हो साथे कर्म सखाय।
हो पुण्ये शुभगति पामीए रे, हो पापे दुर्गति जाय। १.१२ कर्म (क) के कहइ ईश्वर के कहइ विधाता, सुख-दुख सरजनहारा रे।
समयसुन्दर कहइ मई भेद पायउ, करम जु हइ करतारा रे॥ (ख) करम थी को धूटइ नहीं प्राणी, कर्म सबल दुख खाणा जी।
कर्म तणइ वस जीव पड्या सहु, कर्म करइ ते प्रमाण जी॥ तीर्थंकर चक्रवर्ति अतुल बल, वासुदेव बलदेव जी।
ते पणि कर्म विटंब्या कहिये, कर्म सबल नितमेव जी॥ १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जीवकर्म-संबंध गीतम् (१-२) २. वही, करतार गीतम् (१) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, मान-निवारण गीतम् (१) ४. वही, वैराग्य शिक्षा गीतम् (२) ५. चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई (३.१४.१४-१५) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, करतार गीतम् (५) ७. वही, कर्म-छत्तीसी (१-२)
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