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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.१ अटवी
वसती थी अटवी भली, जिहाँ दुरवचन न होइ।
इच्छाई रहियइं आपणी, फल फूल भोजन सोइ ॥१ १.२ अति
तेनाधमेनातितानितं तर्हि त्रुटत्येव। १.३ अप्रमाद (क) नीद्रडी निवारो रहो जागता, वालिभ म करि विश्वास रे।
सांप सिरहाणे सूतो ताहरइ रे, चोर फिरइ चिहुँ पास रे॥ चतुर सुणउ चित लाइ कइ, कहा कहइ घरियारा। जीवित मांहि जायइ घरी, न कोइ राखणहारा॥ पहुर पहुर कइ आंतरइ, राति दिवस मझारा।
बाजा रे बाजम जम तणा, सब रहु हुसियारा॥ १.४ अशरण-भावना
कुण जाणइ पहिलउ पच्छइ, मारिसइ पुत्र कइ माऊ ए।
बाल मरइ बूढ़ा मरइ, ए जग ऊलट्यउ जाऊ ए॥५ १.५ आत्म-निरीक्षण
दूर बलंती कां देखो तुमे रे, पग मां बलती देखो सहु कोइ रे।
पर ना मल मांहि धोयां लूंगड़ा, कहो केम किम उजला होइ रे॥ १.६ आत्म-प्रकाश
अन्तर विचार करउ, समयसुन्दर कहइ।
अन्तर प्रकाश विना, शिवसुख कुण लहइ॥ १.७ आत्म-प्रशंसा
आप प्रशंसा आपणी, करता इन्द नरिंद।
लघुता पामइ लोक मइ, नासइ निज गुणवृन्द॥ १. सीताराम-चौपाई (३.७.८) २. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०३ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, अन्तरङ्गबाह्यनिद्रानिवारण गीतम् (१) ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, घड़ियाली गीतम् (१-२) ५. थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.५.११) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, निन्दावारक गीतम् (२) ७. वही, प्रमाद-त्याग गीतम् (५) ८. वही, दानशीलतपभाव-संवाद (ढाल ५ से पूर्व दूहा ४)
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