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________________ ४१४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५.२.१२४ दुमुह नाम राजा घरइ रे गुणमाला पटराणी। - श्रीजिनसागरसूरि-गीतानि (१२) ५.२.१२५ दुलह किसण दुलहणी राधिका जी। ___ - द्रौपदी-चौपाई(२.८); सिंहलसुत चौपाई (८) ५.२.१२६ दूर दक्षिण कइ देसड़इ। - पुण्यसार-रास (१३) ५.२.१२७ देखि देखि जीव नटावइ अइसउ नाटक मंडाणउ री। -विहरमान वीसी स्तवनाः (१३) ५.२.१२८ देखो माइ आसा मेरइं मन की सफल फली रे, आणंद अंगि न माय। -- सीताराम-चौपाई(४.३) ५.२.१२९ धन-धन अयवन्ती सुकुमाल नइ। - शत्रुञ्जय-रास (५); साधु-वन्दना-रास(९); केशीप्रदेशी प्रबन्ध(१); श्री ढंढण ऋषि गीतम् श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम्। मृगावती-चरित्र-चौपाई(१.६) ५.२.१३० धन-धन ते रिषि गाइयइ। - साधु-वन्दना-रास (१); थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.५) ५.२.१३१ धन पद्मावती। - सीताराम-चौपाई (२.५) ५.२.१३२ धन सारथवाह साधु नइ। - श्री दमयन्ती-सती गीतम् ५.२.१३३ धरम हीयइ धरउ। - धनदत्त-चौपाई (८) ५.२.१३४ धर्म भलो छइ भावना। - पुण्यसार-रास (१५) ५.२.१३५ नगर सुदरसण अति भलउ। - द्रौपदी-चौपाई (१.६); चम्पक श्रेष्ठि चौपाई (१.५); गौतम पृच्छा चौपाई (३); साधु-वन्दना-रास (७); थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.४); वल्कलचीरी-रास (८), मनोरथ गीतम् ५.२.१३६ दल-री। - पुण्यसार-रास (५); दानशीलतपभाव-संवाद-शतक (३); श्री जिनसिंहसूरि गीतानि (१०); चार प्रत्येकबुद्ध रास (१.५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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