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________________ ३७४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व करने का श्रेय कवि के अतिरिक्त अन्य किसी को भी प्राप्त नहीं हुआ है । समयसुन्दर ने निम्नलिखित अनेकार्थी कृतियाँ निबद्ध की हैं १. अष्टलक्षी, २. मेघदूत प्रथम श्लोक के तीन अर्थ, ३. द्वयर्थरागगर्भित पाल्हणपुरमण्डन चन्द्रप्रभजिन स्तवनम्, ४. चतुर्विंशति तीर्थङ्कर - गुरुनाम - गर्भित श्री पार्श्वनाथ स्तवनम्, ५. छ: राग, छत्तीस रागिणी - नाम-गर्भित श्री जिनचन्द्रसूरि गीतम्, ६. पूर्वकवि - प्रणीत श्लोक द्वर्थकरण अमीझरा - पार्श्व स्तव, ७. श्री वीतराग स्तव - छन्द जातिमयम्, ८. श्लेषमय चिन्तामणि पार्श्व स्तवनम्, ९. नानाविध श्लेषमयं श्री आदिनाथ स्तोत्रम्, १०. श्लेषादिभावमय श्री पार्श्वनाथ लघु स्तवन आदि । www यहाँ यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि समयसुन्दर ने 'श्लेष' के प्रयोग में अद्भुत कौशल का परिचय दिया है, जिससे वह केवल बुद्धि का व्यायाम न होकर विवक्षित अर्थ को सुन्दर रीति से प्रकट करने में सहायक होता है। नीचे उद्धरण उद्धृत किये जाते हैं - नित्यं प्रकृति-मत्वेऽपि, नाना विग्रह - वर्तिनि । अभव्ये व्यभिचारित्वात्सर्व-सिद्धि-करं कथम् ॥ - - श्री पार्श्वनाथ लघु स्तवनम् (४) इस पद्य में 'प्रकृति' शब्द के दो अर्थ है– (क) व्याकरण शास्त्रीय अर्थ अर्थात् वह शब्द जिसके साथ कोई प्रत्यय जोड़ा जाता हो और (ख) स्वभाव। इसी तरह 'विग्रह' शब्द के भी दो अर्थ हैं. (क) समस्त पद के अर्थ को बतानेवाला वाक्य और (ख) शरीर । अन्य उदाहरण - ---- तव मित्र वदादेश, तथा समीहित-कृते रीति, संहृते शत्रु - रिवागमः । शब्द - वारिधे ॥ Jain Education International - श्री पार्श्वनाथ लघु स्तवनम् (३) एकधातोरनेकानि रूपाणि किल तत्कथम् । एकमेवाऽभवद्रूप - मथिते सप्तधातुभिः ॥ - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ श्लेषमय लघु स्तवनम् (३) - सती चरण फरसइ करी, पृथिवि हुई निपाप । रज रूपइ ऊँची गइ, ऐ ऐ सील प्रताप ॥ नल-दवदंती रास ( २.३. दूहा ५ ) २.६ उपमालङ्कार समान गुणों के आधार पर एक वस्तु को दूसरी वस्तु के तुल्य बतलाना, उपमाअलंकार कहलाता है । कवि ने अपनी रचनाओं को पद-पद पर उपमा अलंकार से उपमित किया है, इससे उनमें सौन्दर्य एवं चारुता की अभिवृद्धि हुई है । कवि के बहुविध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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