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________________ ३६६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व बताता है । उपदेश से प्रभावित होकर रानी भी संसार से विरक्त हो साध्वीजीवन अंगीकार कर लेती है । चारों प्रत्येकबुद्धों के वैराग्य उत्पन्न होने के कारणों का विवेचन शान्त रस के उत्तम प्रसंग हैं । इन प्रसंगों में संसार की क्षणभंगुरता को साकार रूप प्रदान किया गया है। सुदर्शन मुनि पर मिथ्या दोषारोपण करने पर वेगवती की जो दीन अवस्था हुई, उससे उसके मन में स्वयं के प्रति घृणा हो जाती है और वह प्रायश्चित निमित्त अपना पाप प्रकट कर मुनि को निर्दोष घोषित कर देती है। राजा दशरथ ने एक वृद्ध व्यक्ति को अपनी पट्टरानी को बुलाने भेजा । वृद्ध के विलम्ब से पहुँचने का कारण वृद्धावस्था की दुर्दशा ज्ञात होने पर राजा को वैराग्य हो गया। वृद्धावस्था की दारुण स्थिति का चित्रण करते हुए कवि वृद्ध के मुख से कहलवाता है कुण भगिनी कुण भारिजा, कुण माता रे कुण बाप नइ वीर । वृद्धपणइ वसि को नहीं, पोतानुं रे जे पोष्युं शरीर ॥ पाणी झर बूढ़ापई, आंखि मांहि रे वरइ धूंधलि छाय । काने सुरति नहीं तिसी, बोलतां रे जीभ लडथडि जाय ॥ हलुया पग वह हांलतां, सूगाली रे मुहडइ पडई लाल । दांत पडइ दाढ़ उखडइ, वलि माथइ रे हुयइं धडला बाल ॥ कडि थायइ वलि कूबड़ी, वलि ऊँची रे उपडई नहि मीटि । सगलइ डीलइ सल पडई, नित आवइ रे वलि नाके रीटि ॥ हाल हुकम हालइ नहीं, कोई मानइ रे नहि वचन लगार । धिग बूढ़ापन दीहड़ा कोई न करई रे मरतां नी सार ॥ ४ मुनि सर्वभूतहित ने संसार की असारता का जो चित्रण किया, उससे दशरथ का वैराग्य और अधिक पुष्ट हो गया। मुनि के ये वचन कितने मार्मिक हैं - १. द्रष्टव्य २. द्रष्टव्य चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई (१.४) चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई (१.९ : २.७: ३.१४, ४.६) • सीताराम - चौपाई (१.२) ३. द्रष्टव्य ४. सीताराम - चौपाई (२.१.९-१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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