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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उसा पाणि आणि, वस्त्र पिण भला वहराव्या, सखर कीया लघु शिष्य, गच्छपिण गरुयडि पाया। श्रीमाली श्रावक्क, गच्छ कडूआमती गिरुयउ, पूजा करइ प्रधान, चढ़ावइ चांपउ ने मरुयउ। दानबुद्धि दातार, पड्यउ ते दुरभिक्ष पेखी, खोल्या धानभखार, अन्न द्यइ अवसर देखी ॥१ १.५.३ दयावीर कवि के साहित्य में 'दयावीर-रस' का पोषण करने वाले अनेक प्रसंग हैं, जैसे राजा मेघरथ, मेतार्य मनि, पार्श्वनाथ आदि। मेतार्य मुनि ने क्रौंच पक्षी को बचाने के लिए अनेक यातनाएँ सहन की थीं। दयावीरता की पराकाष्ठा के ऐसे उदाहरण इतिहास में कम ही हैं। भगवान् पार्श्वनाथ ने अग्नि में जलते नाग-नागिन के युगल को बचाया। कवि ने इस प्रसंग का उल्लेख पार्श्वनाथ से संबंधित अनेक गीतों में किया है। एक ऐसा ही प्रसंग राम के जीवन में भी मिलता है। रावण ने सीता-हरण के समय जटायु को आहत कर दिया था। विरह के जख्मों से अति व्यथित होते हुए भी राम ने मरणासन्न जटायु की परिचर्या की। मेघरथ की दयावीरता तो सर्वप्रसिद्ध है, जिन्होंने शरणागत कबूतर की रक्षा हेतु बाज को अपने शरीर का मांस काट-काट कर दिया था। यह घटना आज भी दयावीरता के लिए प्रेरणा-सूत्र है। कवि ने उनकी दयावीरता का वर्णन इस प्रकार किया है - काती लेई पिण्ड कापी नइ, ले मांस तू सींचाण रूड़ा पंखी। त्राजुए तोलावी मुझ नइ दियउ, एह पारिवा प्रमाण रूड़ा राजा ।। त्राजु मंगावी मेघरथ राय जी, कापी-कापी नइ मूकइ मांस रूड़ा राजा। देव माया धारण समी, नावइ एकण अंस रूड़ा राजा। तराजुए बइठउ राजवी, जे भावइ ते खाय रूड़ा पंखी। जीव थी पारेवउ अधिकउ गण्यउ, धन्य पिता तुझ माय रूड़ा राजा ।। १.५.४ धर्मवीर धर्मवीरता तो कवि से सम्पूर्ण साहित्य में सहज देखी जा सकती है। वास्तविकता तो यह है कि कवि की प्रत्येक रचना का नायक धर्मवीर है। रावण जैसे धर्मवीर की धीरता-वीरता से कौन प्रभावित नहीं होगा, जिसने १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, सत्यासिया दुष्काल-वर्णन-छत्तीसी (२१, २५) २. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री मेतार्य ऋषि गीतम् (३-६) ३. द्रष्टव्य - सीताराम-चौपाई (५.५.५-७) ४. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, मेघरथ राजा गीतम् (७-८, ११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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