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________________ ३४९ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व मस्तक मुंडि तुं आपणुं रे, आभरण सवि उतारि ॥ खंडित दंडित अति जरारे, पहिर पुराणा चीर। मस्तक मुखि आखि संसि घसी रे, सगलुं लेपि सरीर ॥ जिम का तिम भामा कर्यउ रे, अरथी न देषइ दोष। दीसइ रूप बीहामणु रे, जाणे भूत प्रदोष ॥ 'रुंड बुंड स्वाहा', 'रुंड बुंड स्वाहा' रे, आठोतर सउ वार। मंत्र गुणे अणबोलती रे, होस्यइ रूप अपार ॥१ कवि ने नारद के रूप को जिस रीति से चित्रित किया है, वह हँसी के इन्द्रधनुष बिखेरता-सा प्रतीत होता है - दंड कमंडल हाथ ले लीधुं, जटाजूट सिर टोप। ___ गलइ जनोई मुंजनी मेखला, गणे त्रिका आटोप॥२ द्रौपदी के हरण हो जाने पर उसकी अत्यधिक खोज करवाई गई, परन्तु जब उसका कहीं पता न चल सका, तो कुन्ती कृष्ण के पास गई। कृष्ण ने जब कुन्ती से आने का कारण पूछा तो वह व्यंग्यमिश्रित भावों में कहने लगी - क्या कहूँ, कहने जैसी बात नहीं है, किन्तु कहे बगैर काम भी नहीं बनेगा। कृष्ण! यहाँ तुम इतनी रानियों के पति होकर भी उन सबकी रक्षा करते हो और वहाँ पाँच पति होते हुए भी एक पत्नी की रक्षा नहीं कर सके यानि द्रौपदी का अपहरण हो गया। यहाँ मधुर हँसी आनी स्वाभाविक है। १.३ करुण-रस आलोच्य कवि के साहित्य में करुण-रस का परिपाक उच्च कोटि का हुआ है। करुण अत्यन्त कोमल रत्न है। इसका स्थायीभाव शोक है। कवि की रचनाओं में करुणरसपूरित प्रसंगों के पर्यवेक्षण से ही ज्ञात हो जाता है कि इष्ट ही हानि, अनिष्ट की प्राप्ति एवं प्रेम-पात्र के वियोग आदि शोक के समुचित अवसरों पर यह रस निष्पन्न होता है। कवि का हृदय करुणार्द्र था। उनके हृदय की यही भावुकता उनकी रचनाओं के करुणमय प्रसंगों में अन्ततः अभिव्यक्त हुई है। इसीलिए वह पाठक के हृदय को छूती व मर्म को बेधती है। सचमुच, कवि की अन्तपीड़ा को उजागर करने में करुण रस के प्रसंग सहायक सिद्ध हुए हैं। इसी कारण भवभूति ने 'एको रसः करुण एव'३ कहकर करुण को सर्वरसों का मूल स्वीकार किया। ___ रुक्मिणी ने प्रद्युम्न नामक पुत्र को जन्म दिया। श्री कृष्ण उसे अपनी गोद में खेला रहे थे। आकस्मिक एक शत्रु-देव आया और रुक्मिणी का रूप बनाकर कृष्ण से १. सांब-प्रद्युम्न चौपाई (१०.१६-१९) २. द्रौपदी-चौपाई (२.९.५) ३. उत्तरराम-चरित (३.४७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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