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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व च्यार धरम चक्र दीपइ, गगन मंडलि रवि जीपइ । अद्भुत वृक्ष अशोक, निरखइ भवियण लोक ॥ छत्र त्रय सिरि छाजइ, विहुँ दिसि चामर राजइ । देव दुंदुभी प्रभु वाजइ, नादइ अंबर गाजइ ॥ जानु प्रमाण पुष्प वृष्टि, विरचइ समकित दृष्टि । ऊँची इन्द्रज लहक, प्रभु जस परिमल महकइ ॥ सिंहासन प्रभु सोहइ, त्रिभुवन ना मन मोहइ | भामंडल प्रभु भाइ, चिहुँ मुख धर्म प्रकास ॥१ निष्कर्षत: हम देखते हैं कि महाकवि समयसुन्दर ने प्राकृतिक तथ्यों, वस्तुओं एक घटनाक्रमों के वर्णन में विशेष रुचि ली है। कवि के वर्णन कौशल को ज्ञात करने के लिए सम्भवतः इतना पर्याप्त होगा । 1 इन वर्णनों में समसामयिक परिस्थितियों की झलक भी मिलती है। भाषा, भाव, ध्वनि तथा बिम्ब का ललित सामञ्जस्य इन वर्णनों की निजी विशेषता है । रसपरिपाक, आलंकारिकता तथा अवसरोचित भाषा का प्रयोग इन सभी वर्णनों में उपलब्ध होता है । ३३६ १. श्री तीर्थंकर समवशरण गीतम् (२-६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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