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________________ समयसुन्दर का वर्णन-कौशल ३३५ १३. षोडष रोग-वर्णन समयसुन्दर ने रोगों का भी सुन्दर वर्णन किया है। नागश्री सोलह रोगों से उत्पीड़ित थी। कवि ने इन रोगों का वर्णन कवित्त्वपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है - खास घणउ खं खुं करइ, सास हीयइ न समाय। ताव तउ तनु छोड़इ नहीं, दाघ ज्वर दुख दाय॥ कुक्षि सूल पणि कस्ट थइ, भलका जाणि भालोड। भगन्दर पणि नहीं भलउ, सीजण माहे खोडि॥ अरस रोग ते हरस नउ, प्रापइ प्राण तां सीम। खाधउ धान जरइ नहीं, ते पछइ जीवइ केम॥ दृष्टि दोष ते दोहिलउ, माथइ आवइ सूल। रुचि भागी अन्न उपरि, जे अन्न जीवन मूल ।। आंखि वेदन कान वेदना, कहूं खाजूवइ काय। पेट वध्युं पीली थई, जलोदर रोग जाय ॥ कोढ़ रोग काया भली, सहु मय भुंडउ एह। वाल्हेसर पणि आपणउ, ढूकड़इ नावइ तेह॥ उपर्युक्त वर्णनों के अतिरिक्त कवि ने तपस्वी, दुष्काल, मनोविनोद, साधना, मुनिदर्शन, दीक्षा, समवशरण, मोक्ष, कामिनी, काम, राजसभा, विलाप, वृद्धावस्था आदि का भी सजीव एवं प्रभावशाली वर्णन किया है। विस्तार-भय से एक-दो उदाहरण दिये जा रहे हैं - १४. तपस्वी-वर्णन हाड हींडतां खड़खडइ, काया काग नी जंघ। सरीर संतोषे सूकयूं, न कीधउ व्रत भंग॥ नसा जाल सवि जूजुई, सूक्यउ लोही नइ मांस। बावीस परिसह जीपवा, रहवं वनवास ॥ आंखि ऊंडी तारा जगमगइ, सुरतरु सुरुआं कान। सूकी आंगली मगनी फली, पग जिम सूकू पान। सूकुं खोऱ्या जेहतुं सर्प नुं, तेहएं दीठ सरूप॥२ १५. समवशरण-वर्णन विरचइ समवसरणा, भव भय दुख हरणा। त्रिगढउ विविध प्रकार, रूप सोवन वसुसार ॥ १. द्रौपदी-चौपाई (१.५.२-७) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री धन्ना (काकंदी) अणगार गीतम् (७-९,१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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