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समयसुन्दर का वर्णन-कौशल
३३१ १०. शकुन-वर्णन
___ कोई काम आरम्भ होने के समय घटित होने वाली कोई ऐसी विशिष्ट घटना, जो उस कार्य के भविष्य के संबंध में शुभ अथवा अशुभ परिणाम सूचित करने वाली मानी जाती हो, शकुन कहलाती है। समयसुन्दर को शकुनों का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने प्रसंग आने पर शुभ या अशुभ शकुन का अनेक स्थानों पर संकेत किया है, किन्तु दो शकुनवर्णन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
राजा शतानीक मृगावती की खोज के लिए प्रस्थान करता है, तो उसे विविध शुभ शकुन दिखाई देते हैं -
आगइ चाल्यउ पारधी रे, पूठइ चाल्यउ राय रे। मारगि सउण भला हुआ रे, आणंद अंगि न माय रे ॥ तिलक कियइ साम्हउ मिल्यउरे, पहिलउ पुरुष प्रधान रे । कुंआरी कन्या मिली रे, पीछइ रांध्यउ धान रे ॥ वेद भणंतइ वेदियइ रे, दीधउ आसीरवाद रे । भेरीनाद सुण्यउ भलउ रे, साम्हउ संखनंउ नाद रे ॥ रास बंधा मिल्या बलधीया रे, वलिय सवच्छी गाय रे। पूरणकुंभ साम्हउ मिल्यउ रे, दरपण दरसण थाय रे॥ दीठी दहीनी आथणी रे, फल दीधउ किणि आण रे। निरधूम अगनि साम्ही मिलि रे, पुण्य तणइ परमाण रे॥ सपलांणउ घोडउ मिल्यउ रे, गज दरसण श्री कार रे। वेश्या दीठी विलसती रे, मच्छ युगम अति सार रे॥ डावा ऊपरि बोलियउ रे, जिमणउ खर ततकाल रे। माल्हाली पर भातिनी रे, डावी देवि रसाल रे ॥ माल्हाला मृगला हुआ रे, वामी कालिका वाच रे। दहिया पूछी दाहिणी रे, तीतर बोल्यउ साच रे ॥ स्यांल हूवा वलि सावडू रे, पूठइ प्रेरइ वाय रे। जिमणां नाहर ऊतर्या रे, दरसण नउल दिखाय रे ।। नील चास तोरण बाधियउ रे, मोरह कीधउ छत्र रे।
सउण कहइ सगला सही रे, मिलस्यद पुत्र-कलत्र रे॥
इसी प्रकार उन्होंने राम, लक्ष्मण आदि का लङ्का की ओर प्रयाण करते समय शुभ शकुनों का विस्तृत विवरण दिया है। इनसे पाठक को यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में कौन-कौन से शकुन-शुभ माने जाते थे। १. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.८.५-१४)
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