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________________ समयसुन्दर की भाषा २७५ प्रणयन किया। उन्होंने एक ऐसी रचना भी लिखी, जो यमकबद्ध है। प्रत्येक पद्य में यमक का चमत्कार उस भाषा का ज्ञाता ही दिखा सकता है। समयसुन्दर ने प्राकृत में रचित अनेक ग्रन्थों की विशद् व्याख्या की है। यद्यपि उन्होंने प्राकृत में किसी स्वतन्त्र ग्रन्थ का निर्माण नहीं किया, फिर भी प्राकृत में उनके कुछेक स्फुट गीत अवश्य प्राप्त होते हैं। इन गीतों की प्राकृत संस्कृत भाषा से प्रभावित लगती है। यद्यपि शब्दावली एवं रूपावली प्राकृत की ही है। उनकी प्राकृत रचनाओं में अपभ्रंश एवं देश्य (देशज) शब्दों का प्रयोग उपलब्ध नहीं होता है। संस्कृत प्रभावित प्राकृत होने के कारण वह साहित्यिक प्राकृत है। उसमें आकर्षण क्षमता है, किन्तु वह स्वाभाविकता नहीं है, जो उनकी अन्य भाषाओं में रचित रचनाओं में प्राप्त होती है। जो रचनाएँ प्राकृत एवं संस्कृत प्राकृत एवं हिन्दी - दोनों भाषा में रची गई हैं, वे काफी रोचक प्रतीत होती हैं। ___ समयसुन्दर की प्राकृत सामान्य प्राकृत है, जिसे हम महाराष्ट्री कह सकते हैं। स्पष्टता के लिए नीचे एक-दो उदाहरण दिये जा रहे हैं - शुद्ध प्राकृत भाषा कलिकसायकलंकमलावहं, निरुवमाणकलाकमलावहं । अहिणुवामि तुमं समयालयं जयइदीव सम समयालयं ॥१ संस्कृत-प्रभावित प्राकृत नमिरसुरासुरखयर-रायकिन्नर-विज्जाहर ! महु यराइविराय-माणपयपंकय-सुन्दर ! महि अल-महिमामे यमणवंछि अ-दायक । जय जय थम्भण पासनाह ! भुवणत्तयनायग॥ परुवयारपायव-पवर-सिंचणसमुइरसमाण। पुरिसादाणिअ पास जिण गुणगणरयण निहाण ॥ वामादेवी उअर सुत्तिमंजुल-मुत्ताह ल। सयलकलावलिकलियकाय कलिमलिवसुहाहल। मोह-महाबल-नीरपंक-निप्फेडण-दिणयर । अरिकरि-निअरिनिरागरणपंचाणण! जयदेव। थंभ (ण) पुरमण्डणमउड सुरनरवंछिअसेव॥२ सम प्राकृत-संस्कृत __ लसण्णाण-विन्नाण-सत्राण मेहं, १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, यमकबद्धप्राकृतभाषायां पार्श्वनाथ लघुस्तवनम् (८) २. वही, – श्री स्तम्भनपार्श्वनाथस्तोत्रम् (१, ३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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