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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २६७ करना, निन्दा, विकथा, प्रमादादि का सेवन न करना, हिंसक उपकरणों तथा सभी दोषपूर्ण प्रवृत्तियों का त्याग करना अनिवार्य बताया है। 'गृहस्थों को पौषध-व्रत का पालन करना चाहिये'- बात को प्रमाणित करने के लिए कवि ने उत्तराध्ययन, निशीथ आदि ग्रन्थों का नामोल्लेख भी किया है। इसके अतिरिक्त कवि ने इसमें इस व्रत की आराधना करने वाले प्रमुख श्रावकों के नामों का निर्देश दिया है। ६.८.३.१० सतरह प्रकार जीव अल्प-बहुत्व गर्भितस्तवनम् जैन-दर्शन में अनेक आत्माओं की सत्ता को स्वीकार किया गया है। जैविक दृष्टि से जैन-आम्नाय में इन सत्ताधारियों के दो भेद बताये गये हैं – (१) सूक्ष्म और (२) बादर। सूक्ष्म जीव समस्त दिशा-विदिशा तथा लोकत्रय में एक समान होते हैं, लेकिन बादर जीव असमान। विभिन्न पक्षों, स्थलों इत्यादि की अपेक्षा से बादर जीवों के सतरह, भेद किये गये हैं। प्रस्तुत स्तवन में उन सतरह भेदों का विश्लेषण किया है। कवि ने 'प्रज्ञापना सूत्र' का उल्लेख करते हुए उसमें कथि विषय की विस्तृत चर्चा उपलब्ध होना बताया है। रचना में तीन ढाल और अन्त में 'कलश' के माध्यम से रचना का उपसंहार किया गया है। प्रथम ढाल में ४ चतुष्पद, द्वितीय ढाल में ८ चतुष्पद और तृतीय ढाल में ९ चतुष्पद हैं। अन्तिम 'कलश' में १ चतुष्पद है। प्रस्तुत रचना का रचना-काल अवर्णित है। ६.८.३.११'चत्तारि-अट्ठ-दस-दोय' पद विचार गर्भित स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन में 'चत्तारि अट्ठ दस दोय' पद का सुन्दर विश्लेषण है। उक्त पद आवश्यक सूत्र नामक ग्रन्थ के 'सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र' का अन्तिम पद है। यह पद ४+८+१०+२=२४ तीर्थङ्करों की संख्या का सूचक है, लेकिन कविवर ने अपनी विशद् बुद्धि-प्रखरता के आधार पर तेरह प्रकार से उक्त तथ्य का विस्तार किया है और पश्चात् उनकी स्तुति भी की है, जिसे कवि ने शास्त्र-सम्मत बताया है। इस गीत का रचना-काल भी अनुपलब्ध है। गीत में १७ गाथाएँ हैं तथा अन्त में 'कलश' भी है। ६.८.३.१२ संघपति सोमजी वेलि प्रस्तुत गीत की रचना संघपति सोमजी के स्वर्गारोहण के अवसर पर हुई थी। सोमजी ने बिम्ब-प्रतिष्ठा, पद-यात्रा-संघ आदि अनेक स्तुत्य धर्म-कार्य किये थे। कवि ने उनका उल्लेख करते हुए कहा है कि ऐसे संघसेवक मृत्युंजय होते हैं, उनके कर्तृत्व की कीर्ति अमर हो जाती है। कवि ने तो यहाँ तक कल्पना की है कि सोमजी का निधन नहीं हुआ, अपितु वे जिनचन्द्रसूरि की भक्ति करने स्वर्ग गये हैं। गीत में १० कड़ियाँ हैं । गीत का रचना-काल एवं रचना-स्थल अनिर्दिष्ट है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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