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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व है। गीत ९ कड़ियों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अनुपलब्ध है। ६.८.३.७ ज्ञान पंचमी वृहत्स्तवनम्
ज्ञान-पंचमी जैनों का धार्मिक पर्व है। ज्ञान-पिपासुजन इसकी आराधना करते हैं। श्वेताम्बर-परम्परा में ज्ञानपंचमी का पर्व कार्तिक शुक्लपक्ष पंचमी को मनाया जाता है, जबकि दिगम्बर-परम्परा में ज्येष्ठ शुक्लपक्ष पंचमी को मनाया जाता है। इस स्तवन की लोकप्रियता भी काफी है। समयसुन्दर ने प्रस्तुत कृति में ज्ञान का माहात्म्य बताकर ज्ञान पंचमी की आराधना-विधि को प्रस्तुत किया है। ज्ञान की महिमा बताते हुए वे लिखते हैं -
न्यान बड़उ संसार, न्यान मुगति दातार । न्यान दीवउ काउ ए, साचउ सरदाउ ए। न्यान लोचन सुविलास, लोकालोक प्रकाश। न्यान विना पसू ए, नर जाणइ किसूं ए॥ न्यानी सासोसास, करम करइ जे नास। नारकी नइ सही ए, कोड़ि वरस कही ए॥ किरिया सहित जउ न्यान, हयइ तउ अति परधान।
सोनउ नइ सुहृतउ ए, सांख दूधइ भरयउ ए॥ आलोच्य रचना तीन ढालों में गम्फिल है। अन्त में 'कलश' के रूप में स्तवन का उपसंहार दिया है। इसका रचना-काल वि०सं० १६६६ की ज्ञानपंचमी है। ६.८.३.८ मौन एकादशी स्तवन
मौन एकादशी जैनों का एक धार्मिक पर्व है। यह प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन मौन रहने का माहात्म्य है। समयसुन्दर ने प्रस्तुत स्तवन में इस दिन की महत्ता का उल्लेख करते हुए इसकी आराधना-विधि आदि दिग्दर्शित की है। यह स्तवन प्रसिद्ध है। इसकी रचना जैसलमेर में वि० सं० १६८१ में हुई थी। कवि ने स्वयं लिखा है -
जेसल सोल इक्यासी समइ, की— स्तवन सहू मन गमइ।
समयसुन्दर कहइ ध्याहड़ी, मिगसर सुदि इग्यारस बड़ी॥ ६.८.३.९ पौषध-विधि गीतम्
कविवर समयसुन्दर ने इस पौषध-विधि-गीतम्' की रचना सं० १६६७, मार्गशीर्ष शुक्ला १०, गुरुवार को की थी। कवि ने जैसलमेर संघ के आग्रह से प्रस्तृत कृति का प्रणयन किया था। यह रचना पाँच ढालों में गुम्फित है। इसमें कवि ने गृहस्थ उपासकों के पौषध-व्रत की विधि का वर्णन किया है। आत्मगवेषणा, धर्माराधना और गार्हस्थिक प्रवृत्तियों से निवृत्ति का प्रयास – यही उक्त व्रत की आराधना का मुख्य उद्देश्य है। इस व्रत की आराधना में कवि ने अप्रतिलेखित एवं अप्रमार्जित भूमि, शय्यादि का उपयोग न
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