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________________ २६४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 'श्री कवि समयसुन्दर ने प्रस्तुत रचना की स्वयं ही वृत्ति लिखी थी। जिसका नाम है चौबीस जिन - गुरुनामगर्भितस्तोत्रस्वोपज्ञ वृत्ति'; किन्तु वृत्तिसहित यह स्तोत्र हमें प्राप्त नहीं हो सका । अतः कल्पना की जा सकती है कि उस वृत्ति में कवि ने प्रस्तुत स्तोत्र में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के विशिष्ट अर्थों को स्पष्ट किया होगा । ६.८.१.२ गुरु दुःखित वचनम् प्रस्तुत कृति कवि के अन्तर्संसार की पीड़ा को प्रकाशित करती है । कवि को अपने जीवन में बहुत ही सम्मान, आदर एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई थी; किन्तु जब उन्हीं के शिष्य वृद्धावस्था में उनका साथ छोड़ देते हैं, तो कवि का हृदय रो उठता है । प्रस्तुत रचना की प्रत्येक पंक्ति आन्तरिक पीड़ा को प्रकट करती है। प्रत्येक पद का अंतिम वाक्य 'यदि ते न गेरोर्भक्ताः शिष्यै किं तैर्निरर्थकैः ' भी कवि की अन्तर्व्यथा को ही अभिव्यंजित करती है। अन्त में कवि समयसुन्दर अपने कृत-कर्मों का दोष मानकर संतोष धारण करते हैं - न शिष्य दोषो दातव्यो, ममकर्नैव तादृशम् । परं भद्रकभावेन, लोला लोलायते मम ॥ प्रस्तुत रचना में कुल १९ कड़ियाँ हैं । 'संवत्यष्टनवत्यग्रे, राजधान्यां स्वभावतः ' से स्पष्ट है कि इसका रचना काल सं० १६९८ है । ६.८.२ प्राकृत में निबद्ध रचनाएँ ६.८.२.१ अल्पबहुत्वविचारगर्भित श्रीमहावीरवृहत्स्तवनम् स्वोपज्ञवृत्तिसहितम् मूल स्तवन प्राकृत भाषा में निबद्ध है, जिसमें महावीर स्वामी की स्तुति के माध्यम से जीवों के अल्प- बहुत्व पर विचार प्रस्तुत किया गया है। मूल कृति संक्षिप्त और मात्र १३ गाथाओं में निबद्ध है । इस पर कवि ने स्वोपज्ञवृत्ति लिखी थी, जो कि बहुत वर्षों पूर्व आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित हुई थी; किन्तु यह वृत्ति हमें देखने को प्राप्त नहीं हो सकी। मूल गाथाओं को देखने से ज्ञात होता है कि इस वृत्ति में जीवों के अल्पबहुत्व से सम्बन्धित विचारों की गम्भीर चर्चा रही होगी। मूल- कृति का रचना-काल सं० १६५४, मार्गशीर्ष वदि १ है । प्रस्तुत रचना चौपड़ा पादेव जी की प्रार्थना पर श्री पत्तन के कंसारपाटक में की गई थी। ६.८.३ भाषा में निबद्ध रचनाएँ ६.८.३.१ श्री परमेश्वर-भेद गीतम् प्रस्तुत गीत में १८ पद्य हैं। इस गीत में कवि ने अरिहन्त में ईश्वर के विविध स्वरूपों और नामों को घटित किया है । गीत का रचना-काल अनिर्दिष्ट है । १. द्रष्टव्य सीताराम - चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५४ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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