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समयसुन्दर की रचनाएँ
२६३ ६.७.२.३ स्थूलिभद्र गीतम्
प्रस्तुत गीत में ८ पद्य हैं। प्रथम ४ पद्यों में मुनि स्थूलिभद्र के कोशा के गृह-प्रांगण में आगमन होने पर कोशा द्वारा अभिव्यक्त बातों को निबद्ध किया गया है और शेष चार पद्यों में मुनि द्वारा वेश्या को प्रदत्त उपदेश एवं कोशा द्वारा श्राविकाव्रत अंगीकार करने का वर्णन किया गया है।
इस गीत का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.७.२.४ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
प्रस्तुत रचना ६ पद्यों में गुम्फित है। इसमें लिखा है कि जब स्थूलिभद्रमुनि कोशा के गृह में साधना करने लगे, तो कोशा ने उन्हें भोग भोगने के लिए बहुत आग्रह किया, लेकिन मुनि विरक्त थे। उन्होंने कोशा को शीलव्रत अंगीकार करने के लिए उपदेश दिया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया।
गीत का रचना-काल अवर्णित है।
उपर्युक्त गीतों के अतिरिक्त निम्नलिखित लघु गीत भी पाये जाते हैं - ६.७.२.५ श्री स्थूलिभद्र गीतम् ६.७.२.६ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
पद्य ४ ६.७.२.७ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
पद्य ३ ६.७.२.८ स्थूलिभद्र गीतम्
पद्य ५ ६.७.२.९ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
पद्य ५ ६.७.२.१० स्थूलिभद्र गीतम्
पद्य ४ कोशा के विरह गीत - इस उपशीर्षक में जिन गीतों का उल्लेख किया गया है, वे सब भाषा में निबद्ध हैं। ६.८ अन्य रचनाएँ
। प्रस्तुत शीर्षक के अन्तर्गत हम उन सभी फुटकर रचनाओं को समाविष्ट कर रहे हैं, जिनका समावेश पूर्वोक्त वर्गान्त में नहीं हुआ है। ६.८.१ संस्कृत में निबद्ध रचनाएँ ६.८.१.१ श्री चौबीस जिन-गुरु-नामगर्भित स्तोत्र
प्रस्तुत स्तोत्र में कवि ने जैन-धर्म के वर्तमान चौबीस तीर्थङ्करों एवं अपनी गुरुपरम्परा में हुए प्रमुख चौबीस आचार्यों की एक साथ स्तुति की है। विशेषता यह है कि तीर्थङ्करों के नामों के साथ जब आचार्यों के नामों को अर्थ रूप में ग्रहण करते हैं, तो वहाँ वे शब्द तीर्थङ्करों के विशेषण बन जाते हैं। इसी प्रकार आचार्यों के नामों के साथ तीर्थङ्करों के नामों को घटित किया जाता है, तो तीर्थङ्करों के नाम आचार्यों के विशेषण बन जाते हैं।
प्रस्तुत रचना भिन्न-भिन्न ७ छन्दों में निबद्ध है। नाहटा-बन्धुओं के उल्लेखानुसार
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