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समयसुन्दर की रचनाएँ
२५९ राजा समुद्रविजय के सुपुत्र नेमिनाथ की बारात जब राजा उग्रसेन के यहाँ उसकी कन्या राजीमती से विवाह करने के लिए पहुंची, तो नेमि को विवाह-भोज के लिए एकत्र किये गये पशुओं का करुण-क्रन्दन सुनाई पड़ा। वे करुणाभिभूत हो उठे। उन्होंने विवाह बन्धन में आबद्ध होने की अपेक्षा इस दुःखबहुल संसार को परित्याग करने का संकल्प किया। वे वैवाहिक वेश-भूषा का त्याग कर गिरनार-गिरि पर मुनि बन तपस्या करने चले गये। राजीमती, जिसके साथ नेमि का विवाह होने वाला था, उक्त समाचार से मूर्छित हो गई। हल्दी चढ़ी, मेहंदी रची, विवाहार्थ प्रस्तुत दुलहिन के रूप एवं विवाह की असफलता ने राजीमती के हृदय में हाहाकार के तूफान पैदा कर दिये। चूँघट-पट उठने से पूर्व यह निर्मम पटापेक्ष उसके लिए असह्य था। उसने दूसरा विवाह नहीं किया और वह नेमि के वियोग में जलती रही। अन्त में उसके हृदय में भी वैराग्य का दीप प्रज्वलित हो गया और उसने विरह-शोक त्यागकर नेमि के पास दीक्षा ले ली।
नेमि और राजीमती के विरह से संबंधित गीतों में समयसुन्दर ने राजीमती की विरह-व्यथा का इतना उदात्त रूप में वर्णन किया है कि पाठक का हृदय उत्तेजित हो जाता है। कवि ने नेमि और राजीमती के विरह से सम्बद्ध अनेक गीतों की रचना की थी, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - ६.७.१.१ भाषा में निबद्ध गीत ६.७.१.१.१ श्री नेमिजिन स्तवनम्
प्रस्तुत स्तवन में ६ पद्य हैं। प्रथम पाँच पद्यों में नेमिनाथ के विरह में राजुल संसार से विरक्त होकर तीर्थङ्कर नेमिनाथ के पास दीक्षित हो गई, यह उल्लेख है।
स्तवन का रचना-समय अनुल्लिखित है। ६.७.१.१.२ नेमिनाथ फाग
- इसमें तीर्थङ्कर नेमिनाथ के जीवन में घटित विशेष घटनाओं का वर्णन करते हुए उन्हें राजा कृष्ण की रानियों द्वारा खेलाये गये वसन्त-फाग का रुचिर चित्रण है।
___ यह गीत ८ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अज्ञात है। ६.७.१.१.३ नेमिनाथ सोहला गीतम
प्रस्तुत रचना का रचना-काल अज्ञात है। रचना ८ पद्यों में आबद्ध है। इसकी विषय-वस्तु इस प्रकार है -
__भगवान् नेमिनाथ विवाह करना नहीं चाहते थे, परन्तु श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नियों के आग्रह से राजा उग्रसेन की कन्या राजुल से उनका विवाह निश्चित कर दिया। उनकी बारात उग्रसेन के द्वार पर पहुँची। वहाँ नेमि ने बन्दी पशुओं की भया चीत्कार सुनी। वे करुणाभिभूत हो गये। 'यदि मेरे विवाह के निमित्त निरपराधी मूक पशुओं का वध होता है, तो मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं ऐसा हिंसाजन्य विवाह न करूँ, - नेमि के इन
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