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________________ २३० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व संकलित किये गये हैं। इसकी समयसुन्दर लिखित दो प्रतियाँ और अन्य लिखित कई प्रतियाँ श्री अगरचन्द नाहटा को मिली थीं। इनमें एक के तो केवल मध्य पत्र ही उन्हें प्राप्त हुए हैं, जिसमें संख्या २१ से ५१ तक के गीत हैं । सं० १६९५ में हरिराम का लिखा हुआ गीत भी इसमें हैं। प्रारम्भिक गीत स्वयं लिखित है और पीछे के गीत हरिराज के लिखित हैं। एक गीत में ११/ गाथा तो स्वयं की लिखित और पीछे का अंश हरिराम का लिखा मिला है। लींबड़ी भण्डार में 'साधुगीतानि' की जो दूसरी प्रति मिली है, उसमें ४९ गीत हैं। इनमें सं० १६९२, मिगसर सुदि १ अहमदाबाद के ईदलपुर में चातुर्मास करते हुए ४५ गीत लिखे और ४ गीत फिर पीछे से लिखे गये। ६ पत्रों की अपूर्ण अन्य प्रति में १३ गीत मिले हैं। ___ अब हम मुनियों सं संबंधित प्राप्त गीतों का स्वतन्त्र रूप में परिचय दे रहे हैं - ६.३.१ श्री शालिभद्रगीत 'श्री शालिभद्र गीत' रचना में कविवर लिखते हैं कि धन्ना और शालिभद्र ने प्रव्रजित होकर कठोर तप-साधना की। अन्तिम जीवन में उन्होंने वैभारगिरि पर संलेखनाव्रत धारण किया। शालिभद्र की माता भद्रा उनके दर्शन करने आई। माता ने उन्हें अपने पलक खोलने के लिए काफी अनुनय किया, लेकिन शालिभद्र ने माता के इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया। अन्त में समाधिमरण प्राप्त कर देव बने, भविष्य में मुक्त होंगे। इस गीत की हस्तलिखित प्रति के अन्त में लिखा है कि 'सं० १६९५ वर्षे मगसिरस्यामावास्यां जोडवाड़ा ग्रामे पं० हरिरामलिखितम्।' इससे स्पष्ट है कि यह रचना उक्त समय से पूर्व-ही प्रणीत हुई होगी। प्रस्तुत गीत में ८ पद्य हैं। ६.३.२ श्री धन्ना अनगार गीतम् । 'श्री धन्ना अनगार गीतम्' १५ गाथाओं में गुम्फित । रचना-स्थल एवं समय दोनों ही अनिर्दिष्ट है। इसका वर्णित विषय अधो-अंकित है - काकन्दी नगरी में भद्रा नामक सार्थवाहिनी अपने पुत्र धन्ना के साथ रहती थी। धन्ना ने एक बार तीर्थङ्कर महावीर का उपदेश सुना और दीक्षा की भावना लेकर घर आया। पत्नियों ने उसे समझाया - मयण दंत लोह ना चणा, किम चाबस्यै कंत। मेरु माथइ करी चालवू, खङ्गधार हो पंथ ॥ पर उसने अपनी बत्तीस पत्नियों एवं धन-वैभव से संबंध तोड़कर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। उन्होंने कठोर तपस्या की और साधु-शिरोमणि हो गए। उनके शरीर मे केवल हड्डियाँ ही रह गईं, परन्तु आत्मा पर आभा खिल उठी। अन्त में उन्होंने अनशन कर परममृत्यु को वरण किया। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, वक्तव्य, पृष्ठ १६-१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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