________________
समयसुन्दर की रचनाएँ
२२९ ६.२.३.८० श्री अमीझरा पार्श्वनाथ गीतम्
पद्य ३ ६.२.३.८१ श्री शामला पार्श्वनाथ गीतम्
पद्य ३ ६.२.३.८२ श्री अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ गीतम्
पद्य ३ ६.२.३.८३
श्री बीबीपुर मण्डन चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन पद्य ३ ६.२.३.८४ श्री भड़कुल पार्श्वनाथ गीतम्
पद्य ३ ६.२.३.८५ श्री तिमरीपुर पार्श्वनाथ गीतम्
पद्य २ ६.२.३.८६ श्री वरकाणा पार्श्वनाथ स्तवनम्
पद्य ३ ६.२.३.८७ श्री भोडुयाग्राम-मण्डन वीरजिन गीतम् पद्य ३ ६.३ मुनियों से संबंधित रचनाएँ
___ मुनि-जीवन एक उच्चस्तरीय नैतिकता तथा आत्मसंयम का जीवन है। मुनिजन समभाव के साधक, प्रेरणा-सूत्र और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में नैतिकता के सजग प्रहरी हुआ करते हैं।
जैनशास्त्रों में मुनियों के दो वर्ग हैं -- १. जिनकल्पी मुनि और २. स्थविर कल्पी मुनि ।' इनमें जिनकल्पी मुनि एकाकी रहकर आत्म-साधना करते हैं, जबकि स्वविरकल्पी मुनि संघ में रहकर साधना करते हैं। 'दशवैकालिक सूत्र'२, उत्तराध्यय सूत्र आदि
जैनागमों में आदर्श मुनि का स्वरूप एवं उसके जीवन का परिचय वर्णित है। आदर्श मुनि नित्य कल्याणपथ में अपनी आत्मा को स्थिर रखकर नश्वर तथा अपवित्र देहावास को त्यागकर और जन्म-मरण के बन्धनों को सर्वथा काटकर अपुनरागति मोक्ष को प्राप्त करता
हमारे विवेच्य कवि समयसुन्दर स्वयं एक मुनि थे और अपने पूर्ववर्ती आदर्श मुनियों के प्रति नतमस्तक थे। उन्होंने आदर्श मुनि-जीवन का सश्रद्धा गुणगान किया है। यह बात उनके मुनियों से संबंधित गीतों से प्रगट होती है।
समयसुन्दर ने मुनियों से संबंधित स्वरचित गीतों का संकलन भी किया था। इस तरह के दो संकलन मिले हैं। प्रथम संकलन का नाम है, 'साधु गीत छत्तीसी'। इसके अन्तिम दो पत्रोंवाली पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है, जिसमें ३१ से ३६ तक के गीत सुरक्षित हैं। प्राप्त पाण्डुलिपि के अन्त में ३६ गीतों की सूची दी गई है, जिससे ज्ञात होता है कि समयसुन्दर ने इसमें ३६ गीतों का संकलन किया होगा। द्वितीय संकलन का नाम है, 'साधु-गीतानि'। इसमें भी मुनियों के जीवनी संबंधी गीत १. विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति (७) २. दशवैकालिकसूत्र ('भिक्खु' नामक दशम् अध्ययन) ३. उत्तराध्ययन सूत्र ('सभिक्खु' नामक पंचदशम् अध्ययन) ४. दशवैकालिक सूत्र (१०.२१)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org