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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषयों की १०० श्लोकों में चर्चा की है। महोपाध्याय विनयसागर का कहना है कि 'काव्यप्रकाश' जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ का अध्ययन कर ध्वनि जैसे सूक्ष्म विषयों पर लेखनी चलाने के लिए प्रौढ़ एवं तलस्पर्शी ज्ञान की आवश्यकता है, जो दीक्षा के पश्चात् ५-६ वर्ष में पूर्ण नहीं हो सकता। यह ज्ञान कम से कम १०-१२ वर्ष के निरन्तर अध्ययन के फलस्वरूप ही हो सकता है।..... मरुधर-प्रान्त जिसमें सांचोर डिविजन में देवगिरा के पठन-पाठन का अत्यन्त अभाव होने से इनका अध्ययन दीक्षा पश्चात् ही हुआ हो, समीचीन मालूम होता है।......... अत: दीक्षा का अनुमानतः संवत् १६२८-३० स्वीकार करते हैं, तो जन्म संवत् १६१० के लगभग निश्चित होता है। (ख) 'भावशतक' ग्रन्थ में कविवर अपने को 'गणि समयसुन्दर' के रूप में उल्लेखित करते हैं। 'गणि' उपाधि जैनसमाज द्वारा उसी मुनि को प्रदान की जाती है, जो आचार और विचार- दोनों में सुदृढ़ है और ५-६ वर्ष के अल्प दीक्षा-पर्याय में गणि' पद प्राप्त हो जाय, असम्भव है। वैसे भी जैन-आगमों में यह निर्दिष्ट है कि दीक्षा ग्रहण करने के आठ वर्ष पश्चात् आचारांग आदि आगमों का ज्ञान होने पर ही 'गणि' पद दिया जा सकता है। अतः कवि की दीक्षा १६२८ से १६३० विक्रम संवत् के मध्य हुई होगी, और चूंकि उन्होंने यौवनवय में दीक्षा ली। अत: विक्रम संवत् लगभग १६१० में उनका जन्म हुआ होगा - यह बात उपयुक्त लगती है। (ग) आचार्य जिनचन्द्रसरि ने वि.सं. १६२८ में सांभलि श्री संघ को पत्र दिया था, उसमें समयसुन्दर का नाम नहीं है। हो भी नहीं सकता, क्योंकि इस पत्र में उल्लिखित उपाधिधारक प्रमुख साधुओं के ही नामों का उल्लेख है। यह सम्भव है कि उस समय तक या तो इनकी दीक्षा ही नहीं हुई होगी या ये नवदीक्षित रहे होंगे। इसलिए इनके नाम का उल्लेख नहीं किया गया होगा। (घ) वादी हर्षनन्दन ने अपने 'समयसुन्दर उपाध्याय गीत' में कवि को 'नवयौवन भर संयम संग्रह्यौ' कहकर कवि के दीक्षा ग्रहण करने की संभावित आयु स्पष्ट कर दी है। नवयौवन भर अवस्था १८ से २० वर्ष की मानी जाती है। अतः कवि ने इसी तरुणअवस्था में संयम धारण किया था। दीक्षा-समय अनुमानतः संवत् १६२८-३० स्वीकार करते हैं, तो जन्म संवत् १६१० निर्धारित होता है।
उपर्युक्त प्राप्त सर्व तथ्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कवि समयसुन्दर का जन्म लगभग विक्रम संवत् १६१० में हुआ होगा।
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, भूमिका, पृष्ठ ३-४ २. देखिए -व्यवहार सूत्र (३.७; १०.२४-२७) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, भूमिका -- महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ४
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