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________________ २०४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५. भाषा-टीका महोपाध्याय समयसुन्दर ने भाषा में भी टीका लिखी है। सम्प्रति, केवल एक ही भाषा-टीका प्राप्त हुई है। वह है 'षडावश्यक-बालावबोध'। बालावबोध वस्तुतः सामान्य बुद्धिवाले लोगों को परिज्ञान कराने के लिए और उन्हें अध्ययन की ओर प्रवृत्त करने के लिए लिखा जाता है। प्रस्तुत है, षडावश्यक-बालावबोध का परिचयात्मक अध्ययन। ५.१ षडावश्यक-बालावबोध प्रस्तुत कृति षट् आवश्यक-कर्म की लोकभाषा में एक व्याख्या है। षट् आवश्यक जैन धर्म के अवश्य करणीय कर्त्तव्य हैं। श्रमण और श्रावक- दोनों के लिए इनका पालन करना अनिवार्य है। दोषों के विशोधन एवं गुणों के प्रगटन के लिए षट् आवश्यक की साधना अपेक्षित है। ये छह आवश्यक निम्नांकित हैं - सामाइयं चउवीसत्थो वंदणयं । पडिक्कमणं काउसग्गो पच्चक्खाणं ॥ अर्थात् सामायिक, चतुर्विंशति जिनस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान- ये छह आवश्यक हैं। इनका विवेचन 'आवश्यक सूत्र' में सविस्तार किया गया है, जिसे षडावश्यक सूत्र भी कहते हैं। आवश्यक का महत्त्व बताते हुए ज्ञानसार में लिखा है कि आवश्यक क्रिया आत्मा को प्राप्त भावशुद्धि से गिरने नहीं देती, गुणों की वृद्धि के लिए तथा प्राप्त गुणों से स्खलित न होने के लिए आवश्यक-क्रिया का आचरण अत्यन्त उपयोगी है। शास्त्र कहता है, जो श्रमण आवश्यक कर्म नहीं करता, वह चारित्र से भ्रष्ट है। अतः पूर्वोक्त क्रम से आवश्यक अवश्य करना चाहिये।३ नन्दीसूत्र आदि शास्त्र-ग्रन्थों में आवश्यक को स्वतन्त्र आगम माना गया है। इस आगम पर नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति, टीका, टब्बा, बालावबोध इत्यादि के रूप में अनेक व्याख्यात्मक रचनाएँ उपलब्ध होती हैं। विवेच्य कृति भी षडावश्यक की एक सुबोध एवं सरल व्याख्या है। बालावबोध लिखने की एक लम्बी परम्परा रही है। हिन्दी-साहित्य में बालावबोध शैली का प्रारम्भ जैनाचार्यों ने ही किया है। इस शैली में लिखने वाले लेखकों में तरुणप्रभसूरि (वि० सं० १३६८) प्रथम थे। इनकी कृति 'षडावश्यक बालावबोध' प्राचीन हिन्दी-गद्य की प्रथम एवं प्रौढ़ कृति है। डा० सत्यनारायण स्वामी ने बालावबोध की पद्धति में लिखी कृतियों की एक दीर्घकालीन परम्परा का उल्लेख किया है। षडावश्यक १. अनुयोगद्वारसूत्र (७४) २. ज्ञानसार, क्रियाष्टक, ५-७ ३. नियमसार, (१४८) ४. द्रष्टव्य - महाकवि समयसुन्दर और उनकी राजस्थानी रचनाएँ, पृष्ठ ४३७-४४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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