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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर अन्तत: यही मानना होगा कि 'महोपाध्याय समयसुन्दर' के नाम से ही जैन-साहित्याकाश में आपकी प्रसिद्धि रही है। आपके शिष्य वादीन्द्र हर्षनन्दन ने भी आपको उपर्युक्त नाम से ही सम्बोधित किया है। ४. जन्म-स्थान
कविवर समयसुन्दर को वीरभूमि राजस्थान में जन्म लेने का गौरव प्राप्त है। राजस्थान न केवल वीरप्रसूता है, अपितु उसने अनेक शूरवीरों के साथ ही साथ दानवीरों, भक्तों और विद्वानों को भी जन्म दिया है। राणाप्रताप जैसे शूरवीर, भामाशाह और जगडूशाह जैसे दानवीर, मीरा जैसी भक्त कवयित्री ने इसी पवित्र भूमि में जन्म लिया है। अनेकानेक जैन आचार्य और सन्त भी इसी भूमि में उत्पन्न हुए हैं। ईसा-पूर्व से लेकर आज तक यह क्षेत्र जैन धर्म के विकास और प्रसार का प्रमुख केन्द्र रहा है। देलवाड़ा, राणकपुर तथा जैसलमेर के जैन मन्दिर इसी प्रदेश में स्थित हैं, जो अपनी कलापूर्ण अमर गरिमाओं के लिए विश्वविख्यात हैं। जैन साहित्य की सुरक्षा के हेतु जिन ज्ञानभण्डारों की स्थापना की गई थी, उनमें से भी अधिकांश आज राजस्थान में ही केन्द्रित हैं। जैसलमेर का ज्ञानभण्डार सर्वाधिक लोकप्रिय है। ऐसी जैन संस्कारों से परिपूर्ण भूमि में हमारे विवेच्य कवि को भी जन्म लेने का पुनीत अवसर प्राप्त हुआ है और उन्होंने अपनी अमूल्य साहित्यिक सेवाओं से अपनी मातृभूमि की इस गरिमा को और अधिक गौरवान्वित किया है।
राजस्थान प्रदेश के सांचोर नामक नगर में कवि का जन्म हुआ था। कवि स्वयं इसकी प्रामाणिक पुष्टि करते हुए कहते हैं -
मुझ जनम श्री साचोर मांहि, तिहां च्यार मासि रह्या उछाहि।
वादी हर्षनन्दन ने भी 'साच साचोरे सद्गुरु जनमियारे'२ कहकर साचोर' स्थल को ही समयसुन्दर का जन्म-स्थान सिद्ध किया है। कवि देवीदास ने भी इसी स्थान की पुनरुक्ति की है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, श्री अगरचन्द नाहटा आदि विद्वानों ने भी कवि की 'साचोर/सांचोर' जन्मभूमि ही स्वीकार की है।
__ कवि की जन्मभूमि सांचोर, भगवान् महावीर के तीर्थ के रूप में जैनसाहित्य में प्रसिद्ध है। इस नगर का प्राच्य नाम 'सत्यपुर' है। कवि ने संवत् १६७७ में 'साचोरमंडन-महावीर-स्तवन ५ नामक गीत की रचना भी की है।
१. सीताराम-चौपाई (६.३.५०) २. नलदवदंती-रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३७ ३. जन्मभूमि साचोरे जेहनी रे -वही, पृष्ठ १३५ ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, भूमिका, पृष्ठ ७ ५. वही, पृष्ठ २२९
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