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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त निधन आदि की सुचना इसी सामग्री से प्राप्त होती है। तीसरे प्रकार की सामग्री वस्तुतः प्रथम और द्वितीय प्रकार की सामग्री पर ही आधारित है।
____ आगामी पृष्ठों में हम पूर्व में निर्देशित समस्त सामग्री का उपयोग करते हुए उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कविवर महोपाध्याय समयसुन्दर के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। ३. नाम ,
कवि समयसुन्दर जैन मुनि थे, उनके गृहस्थ-जीवन के सन्दर्भ में कोई भी प्रामाणिक सूचना प्राप्त नहीं होती है। कवि का गृहस्थ-जीवन का नाम क्या था, इसका उल्लेख न तो कवि ने स्वयं अपनी कृतियों में किया है और न कवि को श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले गीतों में उनके विद्वान् शिष्यों ने ही किया है। अत: प्रव्रज्या को अंगीकार कर 'समयसुन्दर' नामकरण होने के पहले इनका नाम क्या था, इस सन्दर्भ में कोई जानकारी नहीं मिलती है। वे दीक्षितावस्था के नाम 'समयसुन्दर' से ही साहित्य-जगत् में विश्रुत हैं। इसके अतिरिक्त इनके अन्य किसी नाम का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। कवि ने सर्वत्र अपने लिए एक ही नाम 'समयसुन्दर' का प्रयोग किया है। परवर्ती जैन-कवियों ने भी इनके 'समयसुन्दर' नाम का उल्लेख किया है। यद्यपि समयकालीन कवि ऋषभदास ने अवश्य ही इन्हें 'समयोसुरचन्द' नाम से सम्बोधित किया है।
कवि के नाम के साथ प्रयुक्त 'गणि'३ विशेषण इनकी मेधावी प्रतिभा, संयमशीलता और संघ में इनकी प्रतिष्ठा का सूचक है। आपके नाम के साथ संलग्न 'वाचनाचार्य की उपाधि भी आपके आगमिकज्ञान एवं विशद् पाण्डित्य की परिचायक है। उपाध्याय तथा महोपाध्याय के पदों का उल्लेख भी कालान्तर में आपके नाम के साथ प्राप्त होता है। १. तच्छिष्य मुख्यदक्षाः, विद्वद्वर समयसुन्दराह्वयः।
-वादीन्द्र हर्षनन्दन (उत्तराध्ययन-टीका, रचना-सं. १७११) २. सुसाधु हंस समयोसुरचन्द, शीतल वचन जिम शारद चन्द।
-कुमारपाल-रास (रचना सं. १६७०) ३. तच्छिष्य समयसुन्दर गणिना स्वाभ्यास वृद्धिकृते।
-भावशतक (९९), रचना सं. १६४१ ४. गुणविनय समयसुन्दरगणिकृतौ वाचनाचार्या
-कर्मचन्द्र-वंश-प्रबन्ध ५. समयसुन्दर तसु सानिधि करी रे, इस पभणइ उवझाय रे।
-सिंहलसुत-प्रियमेलक-रास (११.६) ६. श्रीसमयसुन्दर महोपाध्याय-चरणसरोरुहाभ्यां नमः।
-हर्षनन्दन (उत्तराध्ययनसूत्र-टीका, प्रारम्भ में)
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