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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस चौपाई की हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त आणन्दजीकल्याणजी एवं धोरा जी के ज्ञान भण्डार में भी इसकी प्रति है। इस कृति को भंवरलाल नाहटा ने सम्पादित करके सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर द्वारा प्रकाशित करवाया है। ४.१.१४ गौतम-पृच्छा-चौपाई
कर्म के मुख्यतः दो भेद हैं -- १. पुण्य-कर्म और २. पाप-कर्म। सांसारिक सुखों का कारण पुण्य और दुखों का कारण पाप है। प्राणी जिन उपायों से पुण्य-कर्म एवं पाप-कर्म का संचय करता है, उनका जैनागामों में सविस्तार विवेचन हुआ है। पुण्य एवं पाप-कर्मों के विपाक के बोध के लिए यह कृति रची है।
प्रस्तुत कृति को गहराई से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह कृति प्राकृत भाषा में किसी पूर्वाचार्य कृत 'गौतम-पृच्छा' का भावानुवाद है -
मधु पाडइ वनि आगि द्यइ त्रोडइ वनस्पति बाल।
डांभइ आंकइ जे जीवनइ कोढ़ी हुवइ तत्काल॥ ३.३० ॥ उपर्युक्त पद्य मूल ‘गौतम-पृच्छा' की निम्न गाथा का कितना सुन्दर अनुवाद है -
महुघाय अग्गिदाहं अंकं वा जो करेइ पाणीणं।
बालाराम-विणासी कुट्ठी सो जायइ पुरिसो॥ दोनों में अन्तर यह है कि प्राकृत 'गौतम-पृच्छा' प्रश्रोत्तर-शैली में है जबकि प्रस्तुत 'गौतम-पृच्छा-चौपाई' में मात्र उन प्रश्नों के उत्तर ही पद्यबद्ध हुए हैं, जो मूल ग्रन्थ में उल्लिखित हैं। कवि ने स्वयं ने तो केवल इतना-सा संकेत दिया है -
पुण्य क्रतूत जिके करइ, ते आपणपुं निस्तारइ रे।
समयसुन्दर साचुं कहइ, गौतमपृच्छा अणुसारइ रे॥२ विवेच्य कृति में कुल ४८ प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। कवि ने यह भी सूचित किया है कि ये प्रश्न भगवान महावीर से उनके प्रधान शिष्य गौतम ने पूछे थे। कवि के शब्दों में -
प्रसन पडूतर परगड़ा, इह किण छई अठतालीसो रे।
गुरु महावीर उत्तर दीया, अनइ पूछया गौतम सीसो रे॥
यह रचना पाँच ढालों में निबद्ध है, जिसमें सब मिलाकर ७४ गाथाएँ हैं। इसका रचना-काल वि० सं० १६९५ है। कवि ने इसकी रचना पाल्हनपुर से पाँच कोस उत्तर दिशा में स्थित चान्द्रेठ (या आंकेठ) नामंक ग्राम के खरतरगच्छीय श्रावक जसवंत के १. श्री गौतम-पृच्छा-वृत्तिः, गाथा ४५, पृष्ठ ९३ २. गौतम-पृच्छा चौपाई (५.७) ३. वही (४.२)
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