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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सिंहलसुत की कहानी भी लोक-कथाओं में सुप्रसिद्ध है और इसकी अनेक सचित्र हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ भी प्राप्त हैं।
सिंहलसुत पर रचित कृतियों में कविप्रवर समयसुन्दर रचित कृति अत्यधिक लोकप्रिय है। इसकी भाषा सरल तथा प्रसादगुणयुक्त है। इस चौपाई की रचना वि० सं० १६७२ में मेड़ता नगर में हुई थी। श्रावक जैसलमेरी झाबक कचरा के मुलतान में किये गये आग्रह से कवि की प्रवृत्ति इस रचना में हुई थी। कवि ने इसी तथ्य का उल्लेख इस प्रकार किया है -
संवत सोल बहुत्तरि समइ रे, मेड़ता नगर मझार। प्रियमेलक तीरथ चउपई रे, कीधी दान अधिकार ।। कचरउ झाबक कौतकी रे, जैसलमेरी जाण।
चतुर जोड़ावी जिणए चउपई रे, मूल आग्रह मुलताण ॥१ सिंहलसुत/प्रियमेलकतीर्थ-चौपाई की हस्तलिखित प्रतियों में एक प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है, जो साध्वी चम्पा के द्वारा कार्तिक कृष्णा ६, सं० १६७२ में लिखी गई। इससे अनुमान किया जा सकता है कि कवि ने उसी वर्षावास में यह रचना रची होगी।
यद्यपि प्रस्तुत कृति का पूरा नाम 'दानाधिकारे प्रियमेलक तीर्थ-प्रबन्धे सिंहलसुत चउपई है', लेकिन संक्षेप में इसे 'सिंहलसुत-चौपाई' अथवा 'सिंहलसुत प्रियमेलक तीर्थ चौपाई' कहा जाता है और इसी नाम से इस कृति की प्रसिद्धि है। यह चौपाई ११ ढाल, २३० गाथाएँ अर्थात् ३०५ ग्रन्थाग्रन्थ में लिखित है। इसका प्रकाशन श्री भंवललाल नाहटा के सम्पादकत्व में सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर द्वारा हुआ है। कृति की विषयवस्तु का सार निम्नांकित है -
सिंहलद्वीप के राजा सिंहल की रानी सिंहली का पुत्र सिंहलसिंह शूरवीर, गुणवान् एवं पुण्यात्मा था। एक बार वसन्त ऋतु में उपवन में पौरजन क्रीड़ा कर रहे थे। एक जंगली हाथी उन्मत्त होकर उधर आया और क्रीड़ारत नगरसेठ धनदत्त की पुत्री धनवती को सूण्ड में उठाकर भागने लगा। सिंहलसिंह ने बुद्धि और युक्तिपूर्वक उसे छुड़ा दिया। दोनों में प्रेम हो गया और सेठ तथा राजा ने उनका विवाह करवा दिया। दोनों सुखपूर्वक काल-निर्गमन करने लगे।
राजकुमार जिस गली में गमन करता, उसके सौन्दर्य पर नगर-वनिताएँ मुग्ध हो जातीं। वे अपना गृहकार्यादि छोड़ पीछे-पीछे घूमने लगतीं। नागरिकों की यह शिकायत १. समयसुन्दर-रासपंचक, प्रियमेलक-तीर्थ-प्रबन्ध-सिंहलसुत-चौपाई (११.२-३) २. समयसुन्दर ने 'सिंहलसिंह, सिंघलकुमार' और 'सिंहलसुत' – तीनों नामों का प्रयोग
किया है। .
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