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समयसुन्दर की रचनाएँ इस 'गाथा-सहस्री' में संग्रह किया गया है। यह ग्रन्थ पण्डितजनों के मुख की शोभा रूप ताम्बूल-सदृश है और व्याख्यानदाताओं के लिए तो अत्यन्त उपयोगी है। संग्रहकर्ता स्वयं ही इस प्रकार कहता है -
व्याख्याचातुर्यवाँछा यदि, भवति तदा शास्त्रमेतत्समग्रं। कण्ठे कृत्वा विशेषाऽवगम-परमार्थं गृहीत्वा गुरुक्तेः। व्याख्याकाले विचाले प्रवर-मवसरं प्राप्य वाच्यं प्रसक्तं,
सभ्येभ्यानां पुरस्ताच्चतुर-चमत्कारकारं च भावि॥१ अर्थात् यदि आप प्रखर वक्ता बनना चाहते हैं, तो सम्पूर्ण ग्रन्थ कण्ठाग्र कर, गुरु के मुख से ग्रन्थ का गूढ़ अर्थ समझकर, प्रतिदिन सभा समक्ष प्रवचन करते समय समयानुसार सुभाषित पद्य बोलने से सज्जनों के चित्त को आप अवश्य आश्चर्य करने वाले होंगे।
समयसुन्दर के गाथा सहस्री में कुल ८५५+६+२ = ८६३ गाथाएँ उपलब्ध होती हैं। गाथाएँ प्राकृत और संस्कृत भाषा की है। गाथा-सहस्री की रचना-समाप्ति का संवत् समयसुन्दर ने स्वयं ही दिया है -
ऋतु-वसु-रस-शशि वर्षे,
विनिर्मितो विजयता चिरं ग्रन्थः ॥२ अर्थात् 'गाथा-सहस्री' ग्रन्थ की रचना वि० सं० १६८६ में समाप्त हुई थी।
___ गाथा सहस्री की हस्तलिखित प्रति चार स्थानों में प्राप्त हुई है। वे ये हैं - १. श्री मोहनलाल-ज्ञान-भण्डार, सूरत, २. श्री जिनदत्तसूरि-ज्ञान-भण्डार, सूरत, ३. श्री जिनदत्तसूरि- ज्ञान-भण्डार, मुम्बई, ४. श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि-ज्ञान-भण्डार, बीकानेर । आज यह ग्रन्थ जिनदत्तसूरि-ज्ञानभण्डार, सूरत और जव्हेरी मूलचन्द हीराचन्द भगत, मुम्बई की ओर से प्रकाशित रूप में भी उपलब्ध है। ३.२ कथाकोश प्रस्तुत ग्रन्थ का परिचय पृष्ठ ११७ पर द्रष्टव्य है।
४. भाषा-वृत्तियाँ 'भाषा' आधुनिक हिन्दी का प्राचीन नाम है। महाकवि समयसुन्दर की भाषाकृतियाँ विपुल हैं। अब तक किये गए शोध से कवि की भाषा में प्रणीत जो कृतियाँ प्राप्त हुई हैं, उनका परिचयात्मक अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा रहा है -
४.१ रास-चौपाई-साहित्य ४.२ छत्तीसी-साहित्य
४.३ अन्य रचनाएँ १. वही, प्रशस्ति (३) २. वही, प्रशस्ति (६)
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