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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १३९ सूरि के नाम से प्रसिद्ध हैं । स्तोत्रकर्त्ता ने प्रस्तुत स्तोत्र की रचना शिवलिंग में निहित तीर्थङ्कर पार्श्व की प्रतिमा प्रकट करने के लिए की थी। आज भी यह स्तोत्र महाप्रभाविक तथा चामत्कारिक माना जाता है । स्तोत्र ४४ पद्यों में निबद्ध है । कविवर की प्रस्तुत कृति उक्त स्तोत्र की व्याख्या है । व्याख्या सरल भाषा में की गई है। स्तोत्र में प्रयुक्त कठिन शब्दों में शीघ्रबोध हेतु वृत्तिकार ने आवश्यक निर्देश दिये हैं। उनके वैयाकरण नियम, शब्दों की व्युत्पत्ति इत्यादि भी वृत्ति में निर्दिष्ट है । इस स्तोत्र में भगवान् पार्श्वनाथ की विविध रूप से स्तुति करते हुए उनका माहात्म्य एवं उनके प्रतिहार्यों का भी वर्णन किया है। स्तोत्र भाव तथा भाषा – दोनों ही दृष्टियों से अनुपम है। 'कल्याणमन्दिर - वृत्ति' का रचना काल वि० सं० १६९५, फाल्गुन शुक्ला १५ है और रचना - स्थान प्रह्लादनपुर है श्री मद्विक्रमतः वरेषु नवषट्जैवातृके वत्सरे । मासे फाल्गुनि प्रपूर्ण शशिनिप्रह्लादने सत्पुरे ॥ वृत्ति की हस्तलिखित पाण्डुलिपि जैन भवन, कोलकाता एवं वाराणसी के जैन श्वेताम्बर पंचायती बड़ा मन्दिर के ज्ञान- भण्डार में सुरक्षित है। २.१६ दंडक-प्रकरण-वृत्ति जैन धर्म में आगमिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्राय: सबसे पहले 'चारप्रकरण' पढ़े जाते हैं। 'दंडक-प्रकरण' तीसरा प्रकरण है। इसके लेखक गजसार मुनि हैं। यह प्रकरण ४२ प्राकृत पद्यों में निबद्ध है। इसमें नारक, असुरा, भुवनपति आदि के शरीर, अवगाहन, संघयण आदि का वर्णन है। किसी वर्ग विशेष को दंडक कहते हैं और जिसके द्वारा उस वर्ग या दंडक के जीवों की आयु, स्थिति, शरीरपरिमाण, गति आदि के संबंध में विचार किया जाता है, वे द्वार कहलाते हैं । समयसुन्दर ने इस 'दंडक प्रकरण' पर सरल अर्थबोध हेतु प्रस्तुत वृत्ति लिखी है । वृत्ति में वृत्तिकार ने सभी गाथाओं की अपेक्षित संक्षिप्त व्याख्या भी की है । व्याकरणसंबंधी आवश्यक निर्देश भी दिए हैं। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि दंडक प्रकरण पर समयसुन्दर से पूर्व अन्य किसी ने वृत्ति नहीं लिखी है। उनके परवर्तीकाल में रूपचन्द्र एवं अन्य किसी अज्ञात विद्वान् ने वृत्ति लिखी है । प्रस्तुत वृत्ति अहमदाबाद के हाजा पटेल पोल की एक शाला में लिखी गई । इसका रचना - काल है - वि० सं० १६९६ । वृत्ति के अन्त में लिखा है संवति रसनिधिगुहमुखसोममिते नभसि कृष्ण पक्षे च । अहमदाबादे हाजा पटेल पोलीस्थ शालायाम् ॥ १९. द्रष्टव्य - जिनरत्नकोश, पृष्ठ १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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