________________
समयसुन्दर की रचनाएँ प्रश्नोत्तर होने चाहियें। प्राप्त पत्र में ग्रन्थ के रचना-काल आदि का निर्देश नहीं है। १.१७ प्रश्नोत्तर सार-संग्रह
प्रस्तुत संग्रह-ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति नाहटा-बन्धुओं के उल्लेखानुसार हंस विजय लाइब्रेरी, बड़ौदा में प्राप्त है, किन्तु अथक प्रयास करने पर भी यह ग्रन्थ हमें प्राप्त नहीं हो सका।
महोपाध्याय विनयसागर के अनुसार 'यह ग्रन्थ नामस्वरूप प्रश्नोत्तर रूप न होकर स्वयं संगृहीत शास्त्रालापकरूप है।"२ १.१८ द्रौपदी-संहरण
___प्रस्तुत ग्रन्थ के बारे में किसी विद्वान् ने कोई जानकारी नहीं दी है। विविध प्रयासों के पश्चात् अन्ततः मुद्रण-कार्य होते समय सूचना प्राप्त हुई कि प्रस्तुत ग्रन्थ की पाण्डुलिपि लालभाई दलपतभाई ग्रन्थालय, अहमदाबाद में उपलब्ध है। पाण्डुलिपि में कुल २१ पत्र हैं। प्राप्त संकेतों से यह कृति परिमाण में बृहत् होनी चाहिये। विशेष विवरण पाण्डुलिपि के अवलोकन के पश्चात् ही प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रयास करने पर यदि पाण्डुलिपि मिल गई, तो हम इस कृति पर अध्ययन करने की अभिलाषा रखते हैं। १.१९ सारस्वतीय शब्द रूपावली
। प्रस्तुत ग्रन्थ की मूल पाण्डुलिपि हमें प्राप्त नहीं हुई है। महोपाध्याय विनयसागर के उल्लेखानुसार इस ग्रन्थ की समयसुन्दर-लिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में है, किन्तु खोज कराने पर प्रति ग्रन्थालय में प्राप्त नहीं हुई। अस्तु।।
ग्रन्थ के नाम से ऐसा लगता है कि इसमें सारस्वत-व्याकरण की शब्द-रूपावली का वर्णन अथवा विवेचन किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ समयसुन्दर द्वारा ही लिखित है, इसकी प्रामाणिकता एवं अप्रामाणिकता के सम्बन्ध में कुछ पुष्ट प्रभाव मिलते हैं। महोपाध्याय विनयसागर द्वारा निर्मित समयसुन्दर की रचनाओं की सूची में प्रस्तुत ग्रन्थ का नामोल्लेख है, किन्तु नाहटा-बन्धुओं ने समयसुन्दर की रचनाओं की तालिका में इस ग्रन्थ का कोई उल्लेख नहीं किया है, जबकि नाहटाबन्धुओं ने महोपाध्याय विनयसागर के पश्चात् सूची प्रकाशित की है। दूसरे में इस ग्रन्थ की प्रति उन्हीं के ग्रन्थालय में उपलब्ध हो और वे उसे किसी अन्य विद्वान् द्वारा उल्लिखित करने के बाद भी अपनी सूची में स्थान न दें, यह बात असम्भव-सी लगती है; तथापि १. समयसुन्दर-चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५३ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ५४ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ५१ ४. वही, पृष्ठ ५१ ५. सीताराम-चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org