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मेरे
भवरोग
. के धनवंतरी वैद्य
- प. पू. सा. गंभीररेखाश्रीजी
पूज्य गुरुभगवंतो के श्रीमूख से कईबार सुना है की..... “तपसा एव निर्जरा” निकाचित कर्मोका क्षय तप की उग्र साधना से ही होता है... तप आत्मा को अविचल स्थान का विराट साम्राज्य प्राप्त कराता है... तपश्चर्या इन्सानकी अकेली शकित या पुण्य का फल नही है । अपितु श्रद्धा के साथ त्यागी तपस्वी गुरु भगवंतो की आंतरिक कृपा आशीर्वाद भी चाहिये। "वडिलजन के आशिष बिना मानवशकित पडू है"
मैने मेरे जीवन मे ऐक छोटा सा तप किया। इन तप दौरान मेरे गुरु भगवंतो की छत्र छाया-कृपा तो थी ही। किन्तु साथ ही जन जन के मनमस्तिक में जो तपस्वीसम्राट के रूप में बीराजमान हो गये थे,
संघ अकता के लिये जिन्होंने काया की माया छोड़ रसेन्द्रिय की सेना
पर विजेता बन आजीवन आयंबिल का भीष्म संकल्प किया था वैसे महान योगीराट् गुरुदेव श्री हिमांशुसूरीश्वरजी म.सा. भी थे, तपस्वी सम्राटका तप अन्य को भी तप की शक्ति देता है मैने जीवन मे २२ वी ओली तीन बार की ३-३ आयंबिल करके शारिरीक अस्वस्थता के कारए। पारणा करना पडा । एक बार किसी गृहस्थ के घरमंदिर की प्रतिष्ठा मे डालने के लिये वासक्षेप भेजा। उसमे लिखा था कि “यह वासक्षेप भगवान या तपस्वी के मस्तक उपर डाल सकते है" मेरे अन्तर मे भावना हुइ की जरुर इस वासक्षेप से मेरी २२ वी ओली होगी ! मैने मेरे गुरुमहाराज से वासक्षेप डलवाया उससे पूर्व मैने कभी पूज्यपादश्रीजी के मेरे जीवन में दर्शन भी नही कीये थे, न जान थी न पहेचान थी तो भी पूज्यश्रीकी अद्भुत साधना से लब्धिवंत बने वासक्षेपने मेरे जीवन में ओक महान चमत्कार कर डाला, बस उनके ही प्रभाव २२ वी ओली ही नही बल्कि लगातार १४४४ आयंबिल पूर्ण हुए आयंबिल मे अनेकानेक विघ्न आये परन्तु तपस्वी दादा के वासक्षेप में अचिन्त्य शक्ति थी ।
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जिस प्रकार गरुड के दर्शन से सर्प भाग जाते है - ठीक उसी प्रकार तपस्वीराट् के नाम व वासक्षेप में अजब गजब की शक्ति का आवास था जिसके कारण विघ्नो के धनधोर बादल भी झंझावात की वायु की तरह हट जाते थे । एसे गुरुदेवश्री की महिमा लिखने बोलने के लिए वाचस्पति या माँ भारती भी समर्थ नही है तो में साधारण मतिवाली साध्वी क्या लिखुं ? आयंबिल चालु किये तब मेरी मात्र २० साल की उम्र थी। जब मेरे १३०० आयंबिल हुए तब हमारा चातुर्मास मेवाडदेशोध्धारक आचार्यदेवश्री जितेन्द्रसूरिजी म.सा. की निश्रा में था पूज्यपादश्री जी की सतत प्रेरणा, वात्सल्य, तपस्या मे उत्साह बढाती थी उस समय अशातावेदनीय कर्म ने वेग पकड़ा और मेरे शरीर मे कम से कम १५-१६ गांठ व श्याम शरीर दिन वेदना बढती थी प. पू. प्रवर्तिनी गुरुदेवश्री पुण्यरेखाश्रीजी बन गया, उदयपुर, रानी, डीसा से बडे डोकटर को बुलाया दिन
म.सा. के भी पत्र आ गये की एसी तबियत मे आगे चलना मुश्कील है पारणा का अवसर देखना..... किंतु मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी, एक बार पूज्यपादश्रीजी हमारे उपाश्रय मे पधारे, मेरी इच्छा जानी, विघ्नजय से सिद्धि मिलती है, यह सच है किंतु कोई इलाज काम नही करता है। अतः पारणा करना उचित है, तब मैंने कहा बस एकबार आपके करकमलो से तपस्वीसम्राट श्री हिमांशुसुरीश्वरजी म.सा. का वासक्षेप डालो उनका अचिन्त्य प्रभाव है, जरुर अच्छा हो जायेगा । पूज्यपादश्रीजी ने वासक्षेप डाला बस उसी दिन से मानो व्याधि भागने लगी कुछ दिनो में अपने आप सब सही हो गया । पूज्यपादश्रीजी का प्रत्यक्ष दर्शन का मोका मात्र एकबार ही हुआ था किंतु उनके अचिन्त्य प्रभाव का अनुभव तो अनेक बार हुआ !
आज भी में स्वर्गस्थ पूज्यपादश्रीजी से याचक बनकर यही आशिषो की याचना करती हूँ की आप जहां भी हो वहां से आशिष बरसाये और तप की शक्ति प्रदान करे की में भी आजीवन आयंबिल कर आत्मकल्याण कर सकु ।
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