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कोटी कोटी वंदना से सूरिवरने,
- मुनि हर्षितविजयजी पूज्यपादश्री प्रौढवय अने जंधाबल क्षीण थयेल होवाथी घणा समयथी नवकार उपाश्रय, वासणामां स्थिरवास हतां. उपाश्रय निकट होवा छतां पण मात्र जिनपूजा, कन्दमुल त्याग अटलुंज जैनपणानुं कर्तव्य समजतो होवाथी कयारेय पूज्यश्रीना दर्शन वंदन भक्तिनुं सद्भाग्य प्राप्त थयुन हतुं.
वि.सं. २०५२ चैत्र महिनामां नूतन दीक्षित पूज्य मुनि दयासिंधु वि.म.सा. ना वंदनार्थेमारे नवकार उपाश्रयमां जवानुं थयुं ने त्यां जेवी रीते दक्षिणावर्त शंख अने चित्रावेल अगणित पुण्यथी नजरे पडे तेम पहेली वखत पूज्यपाद आचार्यभगवंत श्री हिमांशु सूरि म.सा. ना दर्शन थया. भाईमहाराजनी थोडा दिवस पछी अगत्यना कार्य माटे मारे मुंबई जवानुं थयु अने पछी त्यां गुरुमहाराज स्थिरता थोडा दिवस त्यां ज हती अटले वारंवार हुं त्यां जतो, मंदारपुष्पसमा पूज्यपाद मलवा गयो त्यारे गुरुमहाराजे का "आत्मारूपी वस्त्रमा लाल मेलरूपी कर्म ने काढवा माटे निर्म आचार्यभगवंतश्रीनां संयमनी सुवासथी मघमघता वातावरण अने पूज्यगुरु महाराज विद्वद्वर्य पंन्यास पानी युकत साबुरूपी उपधान कलिकुंड मां शरु थवाना छे तो तमे पण अमां जोडाओ तो बह प्रवर श्री जयसुंदरविजयजी म.सा. (हाल आचार्य)ना सांनिध्यना प्रभावे मने त्यारे दीक्षानी प्रबल लाभकारक रहेशे. गुरुमहाराजनी ईच्छा ने तहत्ति करी. पछी मुंबइथी रवाना थइ पाछो अमदाव भावना प्रगटी. पछी ज्यारे ज्यारे गुरुमहाराज साथेना विहारमाथी संसारी घरे रहेवा आवतो त्यारे आव्यो, पूज्यपाद आचार्यभगवंतश्रीना दर्शन वंदने अचूक जतो हतो.
पण, छ विगइ त्यागना कारणे मन थोडु मुंझायेलु हतुं. ए मुंझवणने मुंझवणमा कामधेनु सा वि.सं. २०५३ आसो ओलीमां गुरुमहाराजनी प्रेरणा अने पूज्यपाद आचार्य भगवंतश्री ओ पूज्यपाद आचार्य म.श्री नी पासे गयो ने बधी वात जणावी, निरपवाद चारित्रना उँचां महेल आशीर्वाद साथे आपेल मुहूर्तेवर्धमान तप ओलीनो पायो २ द्रव्यथी नाख्यो ते पछी दिवालीना अवसरे अग्रभाग उपर धजा ( ध्वजा) नी जेम शोभता अवा पूज्यपाद आचार्य म.श्री ओ पहेला तो कोइ प पाछो अमदावाद आव्यो, दिवालीना देववंदन निमित्ते, मोहराजाने लीलापूर्वक जीती चूकेला अवा छूट-छाट नी ना पाडी पछी कांइक विचारी पोताना माटे कठोर अने बीजा माटे कोमल पूज्यश्री पूज्यपाद आचार्य भगवंतश्रीनी पासे पहोंच्यो.
सत्त्वनी कचाशवाला अवा मारा उपर करुणा करी ने कह्यु के "जा, शाक मा जे विगइ आवे प्रतिक्रमण पछी पूज्यश्रीनी पासे बेठो. दीक्षा निमित्ते थता अंतरायो अने घरना सख्त विरोधनी वापरवानी छुट' वात चालती हती. त्यारे पूज्यपाद आचार्य म.श्री. अमने कीधं" के अंतराय तोडवा होय तो कोई पछी, पूज्यश्री ज्ञान-दर्शन-चारित्रनी सुवासवाला वासनो मारा मस्तके निक्षेप कर्यो, जा मोटो अभिग्रह लेवो पडे, बेठा-बेठा कोई दीक्षा न मले" " बोल लेवो छे अभिग्रह" ? में मारी के मारा शरीरने पुष्ट करवा माटे अमने वासरूपे मारामां दुध-दहीं-धीरूप विगइओनो निक्षेप स्वीकृति जणावी त्यारे बालकनी जेम निष्कपट पूज्यपाद आचार्य म.श्री. बोल्या,"तो ले छ विगइना को होय!!! संपूर्णपणे त्यागर्नु पञ्चक्खाण' अम पूज्यपाद आचार्य म.श्री. अमने छ मास नो अभिग्रह आप्यो अने अम पूज्यश्रीना आशीर्वाद लइ कलिकुंड उपधानमां बेठो अने अमना तपोबलनां प्रभावे पड़ कोइमांदगी ना प्रसंगे वलोणावाली छास थी बनेल स वापरवानी छूट आपी.
पूरा उपधान आयंबिलथी जपूर्ण कर्या अने अल्पकालमांज अणमूला अणगारपणानुं आस्वादन करण सद्भागी बन्यो अवा परमोपकारी पूज्यश्रीना चरणोमां कोटि कोटि वंदना.