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________________ श्रीमत् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन गद्यचिन्तामणि, महाकवि बाणभट्ट की कादम्बरी से किसी प्रकार कम नहीं है। धनपाल की तिलकमञ्जरी भी उच्च कोटि की रचना है। हरिचन्द्र का धर्मशर्माभ्युदय, वीरनन्दी का चन्द्रप्रभचरित, अभयदेव का जयन्तविजय, वादिराज का पार्श्वनाथचरित, वाग्भट्ट का नेमिनिर्वाण काव्य और महासेन का प्रद्युम्नचरित आदि उच्च कोटि के काव्य ग्रन्थ हैं। चरित काव्य में जयसिंहनन्दी का वरांगचरित, असग कवि का महावीरचरित और रायमल्ल का जम्बूस्वामीचरित उत्तम माने जाते हैं । चम्पू काव्य में सोमदेव का यशस्तिलकचम्पू बहुत ही ख्यात रचना है । उपलब्ध संस्कृत साहित्य में इसकी जोड़ का एक भी ग्रन्थ नहीं है । हरिश्चन्द्र का जीवन्धरचम्पू तथा अर्हद्दास का पद्मदेवचम्पू भी उत्कृष्ट रचनाएं हैं । चित्रकाव्य में धनंजय कवि का द्विसन्धान काव्य अपनी श्लिष्ट रचनाओं के लिये आद्य ग्रन्थ माना जाता है। इसमें साथ ही साथ राघव और पाण्डव दो राजवंशों की कथाएं कही जाती हैं। ___ दूत काव्यो में मेघदूत की पद्धति से लिखा गया वादिचन्द्र का पवनदूत, चरित. सुन्दर का शीलदूत, विनयप्रभ का चन्द्रदूत और विक्रम का नेमिदूत आदि काव्य प्रसिद्ध रचनाएं हैं। मेघदूत की समश्यापूर्ति के रूप में लिखा हुआ जिनसेन का 'पार्वाभ्युदय' तो एक विचित्र ही ग्रन्थ है। इस प्रकार जैन साहित्य संस्कृत-साहित्य की गरिमा बढ़ा रहा है। पर खेद इस बात का है कि यह सब साहित्य जिस शैली से विद्वत्संसार के समक्ष उपस्थित किया जाना चाहिए था नहीं किया जा सका है। काश, वीतराग जिनेन्द्र के मन्दिरों में तरह-तरह की रागवर्धक सामग्री एकत्रित करनेवाले भक्तजन जिनवाणी का महत्व समझें और अपने दान की धारा का प्रवाह साहित्य-प्रकाशन की ओर मोड़ सकें तो विशाल जैन साहित्य एक बार फिर से अपनी अतीत महिमा प्राप्त कर ले । इत्यलम् ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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