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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
( ६ )
तुम्हें वन्दन हो शत-शत बार
[ श्री सोहनलाल लहरी - खाचरोद ]
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ऋषभ ' - राशी के अनुपम रत्न ' प्रेम ' के ज्योतिर्मय उद्गार ।
मुदित मन - माणिक ' की मुस्कान,
श्री की शोभा के श्रृङ्गार...... हुआ जग पाकर तुम्हें निहाल |
सफल माँ की पावनतम गोद चमकती जैसे ऊषा - काल ॥
विजय का कल-कल मङ्गल-गान, गारही गङ्गा, यमुना आज ।
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धन्य रे धन्य मनुज अवतार || तुम्हें.....
केशरी ' के नन्दन सुकुमार || तुम्हें....
राजेन्द्र ! तुम्हारे सात - कोश
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खिल उठी धरा की धूल, मात्र भू को तुम पर है नाज़ ||
" भरतपुर ' के गौरव - भरतार || तुन्हें.....
खुल पड़े ले रंगिन इतिहास |
जगत् जग्मग् जग्मग् जग उठातपोवन में आया मधुमास ॥
कूक उठती सत् - सागर पार || तुम्हें....