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________________ २२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ ( ६ ) तुम्हें वन्दन हो शत-शत बार [ श्री सोहनलाल लहरी - खाचरोद ] " " ऋषभ ' - राशी के अनुपम रत्न ' प्रेम ' के ज्योतिर्मय उद्गार । मुदित मन - माणिक ' की मुस्कान, श्री की शोभा के श्रृङ्गार...... हुआ जग पाकर तुम्हें निहाल | सफल माँ की पावनतम गोद चमकती जैसे ऊषा - काल ॥ विजय का कल-कल मङ्गल-गान, गारही गङ्गा, यमुना आज । " धन्य रे धन्य मनुज अवतार || तुम्हें..... केशरी ' के नन्दन सुकुमार || तुम्हें.... राजेन्द्र ! तुम्हारे सात - कोश " खिल उठी धरा की धूल, मात्र भू को तुम पर है नाज़ || " भरतपुर ' के गौरव - भरतार || तुन्हें..... खुल पड़े ले रंगिन इतिहास | जगत् जग्मग् जग्मग् जग उठातपोवन में आया मधुमास ॥ कूक उठती सत् - सागर पार || तुम्हें....
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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