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________________ जैनाचार्यों की छन्दशास्त्र के लिए देन डा. गुलाबचन्द्र चौधरी एम. ए. पी. एच. डी. आचार्य छन्द विज्ञान न केवल संस्कृत साहित्य का ही अपितु प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य का भी एक अद्भुत एवं अति महत्त्व का अंग है । व्याकरण के समान ही पूर्वाचार्यों ने इसे छह दांगों में से एक माना हैं। पर इसके नियम न तो अपौरुषेय हैं और न किसी दैवी शक्ति द्वारा नियंत्रित हैं । कोई भी व्यक्ति जिसके कान संस्कृत, प्राकृत आदि के पाठोच्चारण से साधारणतः परिचित हैं, वह यह बात भली भांति पहिचान सकता है कि कौन पद्य है और कौन पद्य नहीं है तथा पथ में कहां त्रुटि हैं और उसे किस रूप में पढ़ा जाना चाहिये । इस प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान हमें वह शक्तिप्रदान करता है जो गद्य पद्य का निर्णय कर अनेक अशुद्धियों का शोधन कर सके । प्रायः देखा जाता है कि प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में पाठकों की सुविधा का थोड़ा भी ध्यान रखे बिना यति-विराम आदि के नियमों की उपेक्षा की गई है । गद्य पद्य को एक में मिलासा दिया गया है। उनके आधार पर छपे हुए बहुत से ग्रन्थ भी अशुद्ध छपे हैं, जिन्हें शीघ्र शुद्ध करना बड़ा कठिन हैं। यह छन्दशास्त्र का ज्ञान हमें इस कठिनता से पार लगा देता है । इतना ही नहीं इसके ठीक ज्ञान से हम काव्यग्रन्थों की तथा पद्यबन्ध अन्यान्य प्राचीन ग्रन्थों की सर्वसाधारण भूलों को लुप्तांश, क्षेपक और परिवर्तनों को भी ताड़ सकते हैं । भारतीय छन्दशास्त्र अपने छन्दों की बहुरूपता और संख्या के कारण संसार की सभी ज्ञात साहित्यिक भाषाओं के छन्दशास्त्र की तुलना में अति पुष्ट एवं समृद्ध प्रमाणित हुआ है । भारतीय छन्द विज्ञान के क्षेत्र में आचार्य पिङ्गल का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है । यद्यपि उससे पहले इस विज्ञान के प्रतिष्ठापक अनेक आचार्य हो गये हैं । फिर भी यह नाम इतना प्रिय हो गया है कि पिङ्गल और छन्द एकात्मबोधक हो गये और छन्द का पर्यायवाची पिङ्गल समझा जाने लगा। यहां तक कि ईसाकी १३-१४ वीं शता० में प्राकृत छन्दों पर लिखे गये एक ग्रन्थ का नाम ही प्राकृत पिङ्गल हो गया । पिङ्गल के बाद इस विषय के अनेक आचार्य हुए हैं; पर केदारभट्ट के ' वृत्तरत्नाकर' को छोड़ न ख्याति क्यों न प्राप्त हो सकी । मालूम उन्हें बैसी आधुनिक अनुसंधानों के फलस्वरूप छन्दशास्त्र पर लिखी गई कुछ जैन विद्वानों की ( ८३ )
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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