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________________ ६६८ श्रीमद् विजयराजेन्द्ररि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन हिय आंगन में प्रेमतरु, सुरभि डार गुणपात । भगन रूप दै लहल है, बिना द्वन्द दुखवात ॥ १० ॥ कवि बनारसीने अपनी उपर्युक्त ' अध्यात्मगीत' शीर्षक रचना की दूसरी पंक्ति में ही लिखा है अवधि अयोध्या आतम राम, सीता सुमति करै परणाम ॥ और इन्होंने अपने एक अन्य पूरे पदमें, 'रामायण' की कथा के युद्ध प्रसंग का रूपक बांधकर, विवेकशील पुरुषों के भीतर प्रायः जागृत हो जानेवाले अंतर्द्वद्व का बड़ा सजीव चित्रण भी किया है। वे उस पद को बिराजै रामायण घट मांहि । मरमी होय मरम सो जाने, मूरख मानै नाहिं ॥ टेक ॥ से आरंभ करते हैं तथा-राम-रावण युद्धवाले प्रमुख पात्रों का वर्णन करते हुए उनके लिए भिन्न-भिन्न उपमानों की सृष्टि करते हैं । इस पदमें भी ' आतम ' को 'राम' एवं ' सुमति ' को ' सीजा ' कहा गया है, किंतु यहां पर विवेक के रणक्षेत्र में संग्राम छिड़ जाने, 'धारणा' की आग में ' मिथ्यामति' की लंका के भस्मीभूत होने, 'अज्ञान' विषयक राक्षसकुल के नष्ट होने, 'दुराशा' की मंदोदरी के मच्छित हो पड़ने तथा इसी प्रकार 'राग' एवं 'द्वेष' नामक दोनों सेनापतियों के जूझने एवं संग्राम गढ के विध्वस्त हो जाने का भी सांग रूपक द्वारा वर्णन किया गया है । ये अंत में कहते हैं इह विधि सकल साधु घट अंतर, होय सहज संग्राम । यह विवहार दृष्टि रामायण, केवल निश्चय राम |" जिससे स्पष्ट है कि यहां पर कविका उद्देश्य केवल शुद्ध नैतिक समस्या के ही स्वरूप का चित्रण करना रहा होगा। परंतु इस कविके प्रायः दोसौ वर्ष पीछे अपने घट ' रामायण ' ग्रंथ की रचना करनेवाले हाथरस के संत तुलसीदास ने 'रामायण' की पूरी कथा का एक रूपक, कुछ अन्य प्रकार से ही बांधने की चेष्टा की है। उनके इस ग्रंथ से यह भी पता चलता है कि वे अपने को प्रसिद्ध 'मानस' कार गो. तुलसीदाससे अभिन्न भी समझते थे और उनका कहना था कि उस रचना का मर्म वस्तुतः और ही प्रकार का है । मानस में जिस कथा का वर्णन १. 'बनारसीविलास', पृ० १८०-१। २. वही, पृ० १५९ । ३. वही, पृ० २३३ । ४, वही, पृ० २३३ ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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