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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ
(४)
स्मरण-जयन्ती।
[ श्री दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद ' बी. ए.]
सरस्वतीपुत्र प्रख्यात हे ! 'राजेन्द्रकोश' के कर्ता ! तप-संयमी ! मुनि यशस्वी हे ! विशुद्ध चरित्र के धर्ता ॥
अर्घ शताब्द व्यतीत हुये हैं स्वर्गस्थ हुये तुम्हें विज्ञ ! तव स्मरणार्थ कर रहे गुरु ! यह समायोजित विद्यायज्ञ ॥
स्मरण--जयन्ती हे परलोकी ! कोविद सुज्ञ मनाते हैं । देश-विदेश के विश्रत विज्ञ श्रद्धापुष्प चढ़ाते हैं । वह स्रोत बहे इस उत्सव सेजगती में रस भरजावे । शत्रु मित्र हों, विश्व राष्ट्र हो, जिनवाणी जग अपनावे ॥
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