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________________ साहित्य हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य । रास, वार्ता, आख्यायिकाएं, नाटक, चंपू आदि लिखे हैं, वे जैनक्षेत्र अथवा जैनवृत्त से ही संबंधित हैं यह बात नहीं है । जैनेतर क्षेत्र और जैनेतर वृत्तों से भी बहुत कुछ लेने का स्वभाव अथवा पद्धति जैन विद्वानों में रही है और है। उन्होंने जैनेतर अथवा जैनपात्र का वृत्त, इति. हास एवं उसकी कथा-वार्ता लिखने में उन सभी रसों का उपयोग किया है, जिन-जिन रसों में हो कर वह नायक निकला अथवा बढ़ा है। यह बात अवश्य है कि जैन विद्वानों ने हर ऐसी कथा-वार्ताओं को बल देकर नैतिकता की दिशा में पहुंचाया हैं। उन्हें आदर्श-जीवन बनानेवाली, प्रेरणा देनेवाली एवं शिक्षाप्रद बनाया हैं। यही कारण है कि एक भी ऐसा ढूढ़ कर उदाहरण नहीं दिया जा सकता कि जैन-क्षेत्र में उत्पन्न हुआ, पला हुआ कोई भी व्यक्ति ऐसा हो कि जिसने संहार को निमंत्रित किया हो, अपनी ओर से पर को दलित करने के लिये आप चला हो। पुराण-काल की बात जाने दीजिये। इतिहास-काल से तो हम सब भलीविध परिचित ही हैं । ये हैं जैन वाङ्गमय की विशेषतायें। अगर इन विशेषताओं के धारक हिन्दी जैन वाङ्गमय का भलीविध प्रचार किया जाय तो विश्वास है इस विषम स्थिति को बदलने में बहुत-कुछ सफलता प्राप्त हो सकती है । जैन और जैनेतर हिन्दी विद्वानों से हमारा सानुरोध आग्रह है कि वे सर्वप्रकार सम्पन्न, समृद्ध एवं एक मात्र लोकहितकारी जैन हिन्दी साहित्य का भी अनुशीलन करें, उसके ग्रंथों को प्रकाश में लावें, उन्हें हिन्दी-साहित्य के इतिहास में योग्य स्थान दें । इत्यलम् ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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