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________________ ६४६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन मिलता है-इस पर ही आपका समय २० वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के भी प्रारंभिक वर्षों का माना जा सकता है । बीकानेर के एक स्वर्गवासी श्रीपूज्य से इतना अवश्य ज्ञात हो सका है कि आप खरतरगच्छीय थे । चिदानन्द इनका आध्यात्मिक साधना के समय पर धारण किया हुआ उपनाम है। तपागच्छीय मुनि कर्पूरविजयने आपकी समस्त प्राप्त कृतियों का संग्रह 'चिदानन्द सर्वसंग्रह ' नाम से प्रकाशित किया है। आपके पदों में माधुर्य, कान्त पदावली और प्रसादगुणसंयुक्त एक अविरल धारा बहती है। प्रकाशित 'चिदानंद सर्वसंग्रह' में 'स्वरोदय', 'पुद्गलगीता', 'बावनी', 'दयाछत्तीसी', ' प्रश्नोत्तररत्नमाला ', ' पद बहत्तरी', और 'आध्यात्मवावनी' रचनायें हैं । आप आधुनिक हिन्दी-काल के जैन कवियों में आध्यात्मिक रचनाओं की दृष्टि से ऊंचा स्थान रखते हैं । आपकी रचनाओं का उदाहरण देखियेः (राग-मल्हार ) ध्यानघटाघन छाये, सु देखो भाइ ! ध्यानघटाघन छाये, ए आंकणी. दम दामिनी दमकति दहदिस अति, अनहद गरज सुनाये । सु० । १। मोटी मोटी बुंद गिरत वसुधा शुचि, प्रेम परम जर लाये । सु० । २। चिदानन्द चातक अति तलसत, शुद्ध सुधाजल पाये । सु०।३। श्री चिदानंदजीकृत — सर्वसंग्रह ' पृ० ७३ विशेष परिचय के लिये देखिये 'सर्वसंग्रह' और वीरवाणी वर्ष २.-११ सन् १९४८. कविवर ज्ञानानंद लगभग ७० वर्ष पूर्व आप के संयमतरंग' और 'ज्ञानविलास' दो पद-संग्रह 'यशविलास और विनयविलास' के पद-संग्रहों के साथ २ निकले थे । उसकी द्वितीयावृत्ति में (सं० १९७८ ) भीमसी माणेकने " ज्ञानविलास पं० ज्ञानसारकृत है " शब्दों द्वारा ज्ञानानंदजी को ही ज्ञानसार मान लिया था। और प्रेमीजी आदिने उसीके आधार से इन पदों के रचयिता के रूप में ज्ञानसारजी का परिचय दिया था; पर वास्तव में ये ज्ञानसार ही भिन्न थे । आप के पदों के अंत तथा मध्य चारित्रनंदी व ज्ञानानंद नाम प्रयुक्त हैं । खोज करने पर खरतरगच्छ के जिनराजसूरि (द्वितीय) की शाखा के चरित्रनंदि के कई ग्रंथ प्राप्त हुये हैं। बनारस में इनका उपाश्रय था। ज्ञानानंद उन्हीं के शिष्य थे । चारित्रनंदि की रचना सं० १८८९ सं० १९०३ तक की प्राप्त है । अतः ज्ञानानंदजी का समय भी इसी के आसपास है । आप के रचित कुछ पदों के संग्रह की प्रति संवत् १९१४ में लिखित प्राप्त होने से यह समय ही आप का मान्य है। देखो, जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ४, अं. १२.
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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