SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 754
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४५ साहित्य हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य । दुर्जन सजन होत नहिं राखो तीरथ वास । मेलो क्यों न कपूर में हींग न होय सुवास ॥ दुष्ट कही सुनि चुप रहो, बोलै है है हान । भाटा मारै कीच में, छींटे लागै आन ॥ (बुधजन सतसई ) जरै, मरे, फटै, परै, नव जीरनता वानि । जरै मरै नहिं जीव ये, दुःखी पराई हानि ॥ जो नरभव समकित गहै, ता महिमा सुरलोय । जो अजान विषयागमन, बृहे सागर सोय ॥ ( तत्त्वार्थवोध ) इनके पद्यों में रहीम और तुलसी की सी सहजता और स्वाभाविकता है । विशेष परिचय के लिये अनेकान्त वर्ष ११-६ अगस्त १९५२ देखिये । पं० सदासुखदास डेडका आप जयपुरनिवासी कासलीवाल दुलीचन्द के पुत्र थे । वीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकारों में आप भी विशेषतः विश्रुत थे । आप की अनेक गद्य-हिन्दी टीकायें प्रसिद्ध हैं। १ ' तत्त्वार्थसूत्रवचनिका', २ 'नाटक समयसार', ३ 'अकलंकाष्टकवचनिका', ४ ' रत्नकरण्डश्रावकाचार', ५ ' मृत्युमहोत्सव', और ६ 'नित्यनियम पूजा' प्रसिद्ध कृतियां एवं टीकायें हैं । आपका रचना-काल वि. सं. १९०६-२१ है। आप दिगम्बर तेरहपंथआम्नाय के अनुयायी थे। आप किसी राजकीय संस्था में मासिक वेतन रू० ८ या रू. १० पर कार्य करते थे और इस अल्प आय पर भी आप को पूर्ण संतोष था। आप अपना अवकाश शास्त्र-स्वाध्याय, तत्त्वचिन्तन एवं टीकादि करने में ही व्यतीत करते थे। आपके एक शिष्य पं० पारसदासजी निगोत्याने अपनी 'ज्ञानसूर्योदयनाटक ' की टीका में आपका जो परिचय दिया है, उससे आप की महानता, विद्वत्ता, समान-हितेच्छुकता का पूरा परिचय मिलता है। आप आधुनिक हिन्दी-काल के जैन विद्वानों में अग्रगण्य विद्वान् हुये हैं । विशेष परिचय के लिये श्री कामताप्रसादरचित ' हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' और अनेकान्त वर्ष १० । ७-८ जनवरी-फरवरी १९५० देखिये ।। योगीराज चिदानन्दजी यद्यपि आपको स्वर्गवासी हुये लगभग १०० वर्ष ही हुये हैं। परन्तु दुःख है इस संतवाणी के धनी योगीराज के व्यक्तिगत जीवन, कुल शिष्य-संतति के संबंध में अभी कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका है। आपकी रचनाओं में एक स्थल पर वि. सं. १९०५ उल्लिखित
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy