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________________ श्रीमत् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ ललितकला और और खेलामण्डप में दर्शक स्तवना और प्रभुगान करते हैं। मूलगंभारा में वेदिका पर प्रमुप्रतिमा प्रतिष्ठित होती हैं। जैनमंदिरों में प्रायः तलगृह जिन्हें देशी भाषा में भोयरा कहा जाता है एक, दो और कहीं अधिक भी बने हुये होते हैं। स्थापत्य की दृष्टि से जैन मंदिर सर्वांगपूर्ण होते हैं इस में अस्पतम भी मतवैभिन्य नहीं । शिल्प की दृष्टि से भी जैन मंदिर कम महत्त्व के नहीं है, यह भी दर्शकगण जानते ही हैं। ___ सीमित निबंध में अतिरिक्त जैन-शिल्प के प्रति संकेत मात्र करने के और विस्तृत दिया भी क्या जा सकता है। एक समय था जब कि जैन-ज्ञान भण्डारों के समान ही अद्भुत शिल्प के नमूने स्वरूप जैन मंदिर भी जैनेतर दर्शकों को आकर्षित नहीं कर रहे थे; परन्तु अब तो जैनेतर विद्वान् , कलाविशेषज्ञ जैन मंदिर और उन में रहे हुये शिल्प-वैभव को अच्छी प्रकार देख और समझ चुके हैं । पाश्चात्य यूरोपियन यात्री एवं विद्वानोंने भी जैन मंदिरों की शिल्प-कला पर अत्यन्त ही मुग्ध हो कर लिखा है। आशा है भारतीय शिल्प के नमूने कहे जानेवाले दर्शनीय स्थानों में और उनके इतिहास में ये भी दर्शनयोग्य एवं वर्ण्य समझे जावेंगे।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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