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तीर्थ-मंदिर राजस्थान के जैन मन्दिर ।
६०७ प्राचीन ताइ-पत्रादि के व अन्य हस्तलिखित ग्रन्थरत्न संग्रहित हैं । जैसलमेर का जैन ग्रन्थभंडार तो प्रसिद्ध ही है, जो यवन आक्रमणों के समय सुरक्षा की दृष्टि से पाटन आदि स्थानों से लाया गया था। ऐसे ग्रन्थभण्डार नागौर, अजमेर आदि जगहों पर अनेक मन्दिरों में हैं, जहां ग्रन्थ, चित्र, ताम्रपत्र, लेख आदि काफी सामग्री किसी समय रक्षा, उपयोग, ज्ञानवृद्धि आदि की दृष्टि से एकत्रित की गई होगी, किन्तु आज उपेक्षा व प्रमाद के कारण अर. क्षित पडी हैं, और कीडे-मकोडे, चूहे दीमक द्वारा जिसके नष्ट होने की आशंका है।
सुसलमानों से रक्षा के लिये कई जगह जैन मन्दिरों के पास मस्जिदों की मीनारें भी खडी की गई हैं । इन्हें धर्मसमन्वय की प्रतीक मानना तो गलत होगा, किन्तु इन से रक्षा करने के एक तरीके की दूरदर्शिता तो प्रकट ही है। फिर भी कई मन्दिरों, जैसे चितौड़ के कीर्तिस्तम्भ आदि पर जैन मूर्तियों का जगह-जगह अंग-भंग व खण्डन किया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ बडे प्रसिद्ध जैन मन्दिरों के लिये जैन-सम्प्रदायों में आपस में ही झगडे व तनातनी है और कहीं-कहीं पर जैनेतर लोगोंने भी जैन मन्दिरों पर अपना कब्जा कर लिया है और अपने या सम्प्रदाय के आराध्य देव की मूर्ति की स्थापना कर उसे अपना मन्दिर बना लिया है । भारतीय संस्कृति, कला और धर्म भावना की रक्षा की दृष्टि से राजस्थान के जैन मन्दिरों का बड़ा ऐतिहासिक तथा गौरवमय स्थान है । जैनियों पर तो इनके संरक्षण और इन संबंधी प्रामाणिक विस्तृत विवरण के संग्रह की दुहरी जिम्मेवारी है, लेकिन जैनेतर लोगों पर भी इस अलभ्य निधिकी ओर पूरा ध्यान देने का उत्तरदायित्व है।