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________________ ६०० श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक - ग्रंथ ललितकला और मिट्टी के टीलों को खुदवाने पर बहुत ऐतिहासिक चीजें प्राप्त हुई हैं। प्राचीन समय के वर्तन आदि भी । बगीचे के निकटवर्त्ती खेत में से ४-५ प्राचीन मन्दिरों के पब्वासन प्राप्त हुए । प्रतिष्ठाकार्य - वर्तमान आचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी ने जो उस समय उपाध्यायजी थे वि० सं० १९९४ मार्गशीर्ष शुक्ला १० को अष्टदिनावधि अष्टान्हिका महोत्सव के साथ बड़े ही हर्षोत्सह से शुभलग्नांश में नवनिर्मित मंदिर की प्रतिष्ठा की । तीर्थाधिपति श्री पद्मप्रभस्वामीजी गादीनशीन किये गये और अन्य मूर्तियों को भी यथास्थान विराजमान करदी गईं। प्रतिष्ठा के दिन नरेशने रू. २००१) भेंट किया और मंदिर की रक्षा का भार अपने ऊपर लिया । सचमुच सर प्रतापसिंह नरेश की प्रभुभक्ति एवं तीर्थप्रेम सराहनीय है । प्रतिष्ठा के समय मंदिर के मुख्य द्वार-गंभारा के दाहिनी ओर एक शिलालेख संगमरमर के प्रस्तर पर उत्कीर्ण करवा कर लगाया गया जो निम्न प्रकार है । श्रीलक्ष्मणी तीर्थप्रतिष्ठा - प्रशस्तिःतीर्थाधिपश्रीपद्मप्रभस्वामिजिनेश्वरेभ्यो नमः | ---- श्रीविक्रमीय निधिवनन्देन्दुतमे वत्सरे कार्तिकाऽसिताऽमावास्यायां शनिवासरेऽतिप्राचीने श्रीलक्ष्मणी जैन महातीर्थे बालुकिरातस्य क्षेत्रतः श्रीपद्मप्रभजिनादितीर्थेश्वराणामनुपम प्रभावशालि न्योऽतिसुन्दरतमाश्चतुर्दशप्रतिमाः प्रादुरभवन् । तत्पूजार्थं प्रतिवर्षमेकसप्ततिरूप्यकसंप्रदानयुतं श्री जिनालयधर्मशालाऽऽरामादिनिर्माणार्थं श्वेताम्बर जैन श्रीसंघस्याऽऽलिराजपुराधिपतिना राष्ट्रकूटवंशीयेन के. सी. आई. ई. इत्युपाधिधारिणा सर प्रतापसिंह बहादुर भूपतिना पूर्वपश्चिमे ५११ दक्षिणोत्तरे ६११ फूट्परिमितं भूमिसमर्पणं व्याधायि, तीर्थरक्षार्थमेकं सुभटं (पुलिस) नियोजितञ्च । तत्राऽलीराजपुर निवासिना श्वेताम्बर जैनसंघेन धर्मशाला रामकूप द्वयसमन्वितं पुरातमजिनालयस्य जीर्णोद्धार मकारयत् । प्रतिष्ठा चास्य वेदनिधिनन्देन्दुतमे विक्रमादित्यवत्सरे मार्गशीर्ष - शुक्लदशभ्यां चन्द्रवासरेऽतिबलवत्तरे शुभलग्ननवांशेऽष्टान्हिकमहोत्सवैः, सहाऽऽलीराजपुरजैनश्रीसंघेनैव सूरिशक्रचक्र तिलकायमानानां श्रीसौधर्म बृहत्तपोगच्छावतंसकानां विश्वपूज्यानामाबालब्रह्मचारिणां प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वराणामन्तेवासीनां व्याख्यानवाचस्पति महोपाध्याय विरुद धारिणां श्रीमद् यतीन्द्रविजयमुनिपुङ्गवानां करकमलेनाऽकारयत् ॥ ~ चड़ती पड़ती के क्रमानुसार लक्ष्मणी पुनः उद्धरित हुआ । इस तीर्थ के उद्धार का संपूर्ण श्रेय यदि किसीको है तो वह श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज को है ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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