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________________ ५९४ भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-पंथ ललितकला और कोरंटगच्छ: जिस समय यह नगर अतीव सम्पन्न एवं प्रसिद्ध था, उस समय इसके नाम से 'कोरंटगच्छ' नामक गच्छ भी निकला था। वह विक्रमीय १६ वीं शताब्दी तक विद्यमान था । इस गच्छ के मूल उत्पादक आचार्यश्री कनकप्रभसूरिजी माने जाते हैं। उएसवंश स्थापक श्रुतकेवली श्रीरत्नप्रभसरिजी के वे छोटे गुरुभ्राता थे । इस गच्छ के आचार्यों की प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ अनेक गावों में पाई जाती हैं। वि. सं. १५१५ के लगभग इस स्थान में ही कोरंट तपा' नाम की एक शाखा भी निकली थी। मालम होता है कि यह गच्छ अपनी शाखा के सहित विक्रम की १८ वीं शताब्दी में विलीन हो गया। इस समय इसका नामशेष ही रहा जान पड़ता है। एक ताम्रपत्र का पता विक्रम संवत १६०१ में जब माटुंगानिवासी ईगलिया नामक मरेठा मारवाड को लूटने के लिये आया था, तब वह कोरटा से एक ताम्र-पत्र और कालिकादेवी की मूर्ति ले गया था । कहा जाता है कि वह ताम्रपत्र अब भी माटुंगा में एक महाजन के पास है। कोरटा के महाजन प्रतापजी की बही में उक्त ताम्रपत्र से चौदह ककार उतारे गये हैं। व इस प्रकार हैं:-कणयापुरपाटण १, कनकधर राजा २, कनकावती राणी, ३, कनैयाँ. कुवर ४, कनकेसर मुता ५, कालिकादेवी, ६, कांबीवाव ७, केदारनाथ ८, ककुआतालाव ९, कलरवाव १०, केदारिया बांभण ११, कनकावली वेश्या १२, किशनमंदिर १३, केशरियानाथ १४ । __इन चौदह ककारों में से किसन (चारभुजा) का मन्दिर गांव के बीच में, कालिकादेवी और ककु आतलाव गांव से दक्षिण, कांबीवाव और केदारनाथ गांव से पौण माइल पूर्व-दक्षिण कोण में, कलरवाव धोलागढ और बांभणेरा गांव के मध्य में और केसरियानाथबिंब कोरटाजी के नये मन्दिर में विराजमान हैं। किंवदन्ति है कि 'आनन्दचोकला के राज्यकाल में नाहड मंत्रिने कालिका मन्दिर, केदारनाथ, खेतलादेवल, महादेवदेवल और कांबीवाव ये पांच स्थान संबंधित इनकी भूमिस्थलों के श्री महावीर प्रभु की सेवा में अर्पण किये थे; परंतु आज कांबीवाव के अतिरिक्त अन्य कोई स्थान महावीर प्रभु के मन्दिर के अधिकार में नहीं है। दूसरे दो प्राचीन जिनमंदिर गांव से पश्चिम धोलागढ़ की ढाल भूमि पर पहला मंदिर श्री आदिनाथ का और दूसरा गांव में उत्तर की ओर है। इन दोनों मन्दिरों की स्तंभमालाओं के एक स्तंभ पर
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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