SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-प्रथ जैनधर्म की प्राचीनता पास बताया जाता है, मुंगेर जिले के अंतर्गत है। महाभारत' में इस प्रदेश को एक स्वतंत्र राज्य ' मोदगिरि ' के नाम से उल्लिखित किया है, जो बाद में अंग देश से मिला दिया गया था। अर्थात् प्राचीन ऐतिहासिक युग में यह स्थान विदेह में न हो कर अंग देश अथवा मोदगिरि के अंतर्गत था । इसलिए यह स्थान भगवान् की जन्मभूमि नहीं हो सकता। (२) आधुनिक क्षत्रियकुंड पर्वत पर है, जब कि प्राचीन क्षत्रियकुंड के साथ शास्त्रों में पर्वत का कोई वर्णन नहीं मिलता। चूंकि वैशाली के आसपास पहाड़ नहीं हैं, इस लिये भी वही स्थान भगवान् का जन्मस्थान अधिक संभव प्रतीत होता है । (३) आधुनिक क्षत्रियकुंड की तलहटी में एक नाला बहता है, जो कि गंडकी नहीं है । गंडकी नदी आज भी वैशाली के पास वहती है । (४) शास्त्रो में क्षत्रियकुंड को वैशाली के निकट बताया है जब कि आधुनिक स्थान के निकट वैशाली नहीं है । (५) विदेह देश तो गंगा के उत्तर में है जब कि आधुनिक क्षत्रियकुंड गंगा के दक्षिण में है। अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जो स्थान आजकल बसाढ़ नाम से प्रसिद्ध है वही प्राचीन वैशाली है। इसी के निकट क्षत्रियकुंडग्राम था जहां भगवान् के तीन कल्याणक हुए थे। उनका कहना है कि (१) इसी स्थान के निकट आज भी वाणियागांव कूमनछपरागाछी और कोल्हुआ मौजूद हैं। आजकल यह क्षत्रियकुंड स्थान बासुकुंड नाम से प्रसिद्ध है । (२) आालोजिकल विभाग भी बासुकुंड को ही प्राचीन क्षत्रियकुंड मानता है । (३) यहां के स्थानीय लोग भी यही समझते हैं कि भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ था। अन्य प्रसिद्ध जैन विद्वानों का भी यही विचार है। श्री सुखलालजी संघवी और डाक्टर हीरालाल जैन ऐसा ही मत वैशाली-महोत्सवों के अपने अध्यक्षीय भाषणों में (क्रमशः १९५३ और १९५५ में ) व्यक्त कर चुके हैं। पहले-पहल १९४७ ई. में बिहार सरकार ने महावीर-जन्म-दिवस (चैत सुदी तेरह ) को सार्वजनिक छुट्टी घोषित की। उस समय तक वैशाली-महोत्सव (जो १९४५ से वैशाली और महावीर की पवित्र स्मृति में प्रारंभ हुआ था) मार्च-एप्रिल में सुविधाजनक तिथियों पर मनाया जाता था। सरकार द्वारा सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा होते ही वैशाली-महोत्सव १९४८ से चैत सुदी
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy