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________________ और उसका प्रसार जैनागमों में महत्त्वपूर्ण काल-गणना । जैन तीर्थङ्करों और अतिशय ज्ञानियों के ज्ञान का जो थोड़ा सा अंश आज प्राप्त है और उसमें कई विषयों का जिस सूक्ष्मता के साथ वर्णन है उसको देखने पर हमारे प्राचीन महापुरुषों का ज्ञान कितना गम्भीर और विशाल था, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। उपलब्ध जैनागमों में प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास, धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, संगीत, अलौकिक विद्याएं, शक्तिया, तत्कालीन सामाजिक जीवन, राजनैतिक परिस्थितियाँ व परमाणुज्ञाने, कर्मसिद्धांत आदि का बहुत ही ज्ञातव्य विवरण मिलता है । भारतीय प्रान्तीय भाषाओं के विकास, शब्दों के मूलरूप, स्वरूपपरिवर्तन, अर्थपरिवर्तन आदि की दृष्टि से भी प्राकृत भाषा में निवद्ध इन आगमों का बड़ा महत्व है । खेद है कि उनका यद्यपि विविध दृष्टि से महत्व है, पर उनका मूल्यांकन अभी प्रायः नहीं हो पाया। श्वेताम्बर जैन समाज में तो इनका महत्व धार्मिक दृष्टि से ही रूढ़ है । मुनिगण उसी धार्मिक भावना व श्रद्धा से इनका अध्ययन-अध्यापन व वाचन-व्याख्यान आदि करते हैं और श्रावक विद्वान् भी इसी भावना से उन्हें सुनकर धर्म व आनन्द प्राप्त करते हैं । सर्वप्रथम इनका जो अन्य व्यापक दृष्टिकोण से जो महत्व है, इसकी ओर पाश्चात्य विद्वानोंने ध्यान दिया और अब कुछ भारतीय विद्वानोंने भी प्रयत्न किया है, पर वह बहुत ही सीमित है। जब कई विद्वान् विविध दृष्टियों से इनके महत्व पर प्रकाश डालेंगे तभी उनके महत्व का परिचय सर्वसुलभ हो सकेगा । प्रस्तुत लेख में तो जैनआगमों में जो समय या काल-गणना का सूक्ष्म और विशद विवरण है उसीका थोड़ा परिचय कराया जा रहा है जिससे उनके महत्वकी झांकी पाठकों के सन्मुख आये। गणित के क्षेत्र में भारतीय मनिषियों की देन बहुत ही उल्लेखनीय है। जैनागमों में प्राचीन गणित और ज्योतिष पद्धति का जो महत्वपूर्ण विवरण मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। गणित का आधार संख्या है । जैनेतर ग्रन्थों में संख्या का परिमाण जहां तक मिलता है, जैनागमों में उससे बहुत आगे की संख्याओं का विवरण प्राप्त है। समय की सूक्ष्मता और कालगणना की दीर्घता का इतना अधिक विवरण विश्व-साहित्य में कहीं भी नहीं मिलता और संख्याओं के नाम और गुणन की पद्धति भी जो जैनागमों में मिलती है वह अन्य ग्रन्थों से भिन्न प्रकार की है । पाठकों को इसका कुछ परिचय अभी करवाया जा रहा है। जैन दर्शन में इस जगत के समस्त पदार्थों को जड़ और चेतन दो मुख्य भागों में विभक्त किया गया है । चेतन तो जीव या आत्मा के नाम से प्रसिद्ध है ही, जड़ को ४ या ५ भागों में विभक्त किया है। (१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, १ देखो जैन भारतीय, ९४ अं. ५२-५३ ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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